BMC Privatization Protest by Workers Union: मुंबई, जो अपनी जीवंतता और तेज रफ्तार के लिए जानी जाती है, एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मुद्दा है बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) की सेवाओं के निजीकरण (Privatization Protest, निजीकरण विरोध) का, जिसके खिलाफ म्युनिसिपल मजदूर यूनियन (MMU) ने आवाज बुलंद की है। यूनियन ने 17 जून को आजाद मैदान में एक विशाल मोर्चा निकालने की घोषणा की है, जिसमें 5000 से अधिक कर्मचारी शामिल होंगे। यह प्रदर्शन बीएमसी की उन योजनाओं के खिलाफ है, जो विभिन्न सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने की दिशा में बढ़ रही हैं। यूनियन के महासचिव प्रदीप नरकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बीएमसी कर्मचारी अब चुप नहीं रहेंगे, क्योंकि उनके रोजगार को ठेकेदारों को सौंपकर राजनीतिक हित साधे जा रहे हैं। यह मुद्दा न केवल कर्मचारियों के लिए, बल्कि मुंबई के हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शहर की सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही से जुड़ा है।
यह विरोध तब शुरू हुआ, जब बीएमसी ने बोरीवली के भगवती अस्पताल को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership, सार्वजनिक-निजी भागीदारी) मॉडल के तहत चलाने के लिए टेंडर जारी किए। इस कदम का कर्मचारियों और यूनियन ने जोरदार विरोध किया, जिसके बाद प्रशासन ने इस योजना को अस्थायी रूप से रोक दिया। लेकिन गोवंडी के शताब्दी अस्पताल, मानखुर्द के लालू भाई कंपाउंड अस्पताल, और अन्य बीएमसी अस्पतालों के भविष्य को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है। यूनियन का कहना है कि निजीकरण की यह नीति केवल अस्पतालों तक सीमित नहीं है। कचरा प्रबंधन, परिवहन, और जल आपूर्ति जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं को भी निजी ठेकेदारों को सौंपने की योजना है। प्रदीप नरकर ने बताया कि बीएमसी के पास पहले से ही अपने कर्मचारी और अनुबंधित श्रमिक इन सेवाओं को संभालने के लिए मौजूद हैं, फिर भी निजी कंपनियों को शामिल करने की जल्दबाजी समझ से परे है।
मुंबई जैसे शहर में, जहां हर दिन 7200 से 7300 टन कचरा उत्पन्न होता है, कचरा प्रबंधन एक जटिल और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। बीएमसी इस काम के लिए 1334 वाहनों का उपयोग करती है, जिनमें से कुछ उसके अपने हैं, जबकि अधिकांश निजी ठेकेदारों से किराए पर लिए गए हैं। यूनियन का तर्क है कि बीएमसी कर्मचारी इस काम को पूरी जवाबदेही के साथ करते हैं। अगर कोई गलती होती है, तो वे जनता और प्रशासन के प्रति जवाबदेह होते हैं। लेकिन निजी ठेकेदारों के मामले में ऐसा नहीं है। अगर उनकी सेवा में कमी पाई जाती है, तो बस उनका अनुबंध रद्द कर दिया जाता है, और कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। इससे न केवल सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि आम नागरिकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
यूनियन ने यह भी बताया कि बीएमसी में कुल 1,45,573 स्वीकृत पद हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 85,000 पद ही भरे हुए हैं। बाकी रिक्त पदों पर भर्ती को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। प्रदीप नरकर ने कहा कि प्रशासनिक शासन के दौर में, जब कोई निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है, बीएमसी के फैसले बिना किसी विरोध के लागू हो रहे हैं। उनका आरोप है कि ये फैसले सत्ताधारी नेताओं के इशारे पर लिए जा रहे हैं, और इसका मकसद ठेकेदारों को फायदा पहुंचाना है। कर्मचारियों को दूसरी पाली में स्थानांतरित करने की योजना भी इसी दिशा में एक कदम है, जिसका यूनियन पुरजोर विरोध कर रही है।
यह विरोध केवल कर्मचारियों के हितों तक सीमित नहीं है। मुंबई के नागरिकों के लिए बीएमसी की सेवाएं जीवन का आधार हैं। चाहे वह अस्पताल हों, कचरा प्रबंधन हो, या जल आपूर्ति, इन सेवाओं का सीधा असर शहरवासियों के जीवन पर पड़ता है। यूनियन का कहना है कि निजीकरण से सेवाओं की गुणवत्ता और गिर सकती है, क्योंकि ठेकेदार मुनाफे को प्राथमिकता देंगे, न कि जनता की जरूरतों को। पहले भी बीएमसी की सेवाओं की आलोचना होती रही है, और निजीकरण इस स्थिति को और बदतर कर सकता है। उदाहरण के लिए, बीईएसटी बस सेवाओं के निजीकरण के बाद दुर्घटनाएं, खराब रखरखाव, और कर्मचारियों के शोषण की शिकायतें बढ़ी हैं। यूनियन नहीं चाहती कि बीएमसी की अन्य सेवाओं का भी यही हाल हो।
आजाद मैदान में होने वाला यह मोर्चा एक चेतावनी है कि बीएमसी कर्मचारी अपनी आवाज को दबने नहीं देंगे। यह प्रदर्शन न केवल निजीकरण के खिलाफ है, बल्कि यह मुंबई के नागरिकों को यह याद दिलाने का भी प्रयास है कि शहर की सेवाएं उनके लिए हैं, और उनकी गुणवत्ता को बनाए रखना सबकी जिम्मेदारी है। यूनियन ने स्पष्ट किया है कि वे इस लड़ाई को तब तक जारी रखेंगे, जब तक बीएमसी अपनी नीतियों पर पुनर्विचार नहीं करती। यह मुद्दा मुंबई के भविष्य से जुड़ा है, जहां हर नागरिक को बेहतर और जवाबदेह सेवाओं का हक है।