हिंद महासागर में भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक ऐसा रहस्यमय गड्ढा है, जिसने वैज्ञानिकों को दशकों तक उलझन में डाले रखा। समुद्र के पानी में 348 फीट गहरे इस गड्ढे को “पाताल का रास्ता” (Pathway to Paatal) कहा जाता है। इसे 1948 में खोजा गया था और वैज्ञानिकों ने इसे “ग्रेविटी होल” (Gravity Hole) नाम दिया। अब, वर्षों की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने इसके पीछे के रहस्य का पता लगाया है।
भारत से 1200 किमी दूर: गुरुत्वाकर्षण का खेल
हिंद महासागर के इस हिस्से की सबसे खास बात यह है कि यहां पानी का स्तर बाकी दुनिया के समुद्री क्षेत्रों की तुलना में 348 फीट नीचे है। यह क्षेत्र भारत से लगभग 1200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और 31 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
“पाताल का रास्ता” (Pathway to Paatal) बनने का कारण यहां का कमजोर गुरुत्वाकर्षण बल है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में पृथ्वी की क्रस्ट (पपड़ी) और मेंटल के बीच की परतों में असामान्य बदलाव के कारण गुरुत्वाकर्षण खिंचाव कम हो गया है।
कैसे बना यह ग्रेविटी होल?
इस रहस्यमय गड्ढे के निर्माण की जड़ें करोड़ों साल पहले की भूगर्भीय घटनाओं से जुड़ी हैं। रिसर्च में पाया गया है कि इस क्षेत्र के निर्माण के पीछे एक विलुप्त सागर, “टेथीज सागर” (Tethys Ocean) जिम्मेदार है। यह समुद्र अब खत्म हो चुका है, लेकिन इसका प्रभाव आज भी मौजूद है।
14 करोड़ साल पहले, टेथीज सागर पृथ्वी की पपड़ी पर स्थित था। 18 करोड़ साल पहले, जब गोंडवाना महाद्वीप टूट रहा था, तो यह सागर यूरेशियन प्लेट के नीचे दब गया। इस प्रक्रिया में सागर की तलछट और समुद्री तल, मेंटल के नीचे धंस गए। इस धंसने के कारण क्षेत्र का कुल द्रव्यमान कम हो गया, जिससे गुरुत्वाकर्षण खिंचाव कमजोर हो गया।
टेथीज सागर का प्रभाव: गुरुत्वाकर्षण में गिरावट
टेथीज सागर के दबने के बाद, इसके सी-बेड मेंटल के नीचे पिघलने लगा। इस प्रक्रिया में द्रव्यमान में कमी आई और इसके कारण हिंद महासागर के इस हिस्से में गुरुत्वाकर्षण बल अन्य क्षेत्रों की तुलना में कमजोर हो गया।
इस क्षेत्र का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव इतना कमजोर है कि यहां समुद्र का पानी अपने सामान्य स्तर से नीचे चला गया है। यही कारण है कि यह गड्ढा समुद्र में “पाताल का रास्ता” जैसा प्रतीत होता है।
2023 में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यह क्षेत्र 14 करोड़ साल पहले बना था और इसका अस्तित्व टेथीज सागर के इतिहास से गहराई से जुड़ा है।
‘ग्रेविटी होल’ और इसका वैज्ञानिक महत्व
“ग्रेविटी होल” (Gravity Hole) न केवल भूवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पृथ्वी की पपड़ी और मेंटल के बीच चलने वाली प्रक्रियाओं को समझने में भी मदद करता है।
इस क्षेत्र की रिसर्च से यह भी पता चला है कि पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल समान नहीं है। यह क्षेत्र उन अद्वितीय जगहों में से एक है, जहां गुरुत्वाकर्षण बल अन्य जगहों की तुलना में कमजोर है। इससे यह सवाल उठता है कि अन्य महासागरों और भूगर्भीय संरचनाओं में क्या ऐसे और भी रहस्य छिपे हो सकते हैं।
#IndianOcean #GravityHole #PathwayToPaatal #OceanMysteries #ScientificDiscovery
ये भी पढ़ें: Maharashtra polls: 70 लाख वोट आखिरी घंटे में, मतदाता सूची में छेड़छाड़ और पक्षपात? कांग्रेस ने उठाए सवाल