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Islamic Farming Technique: वैज्ञानिकों ने खोजी खेती की पुरानी इस्लामिक तकनीक, मुस्लिम शोधकर्ताओं ने की मदद

Islamic Farming Technique: वैज्ञानिकों ने खोजी खेती की पुरानी इस्लामिक तकनीक, मुस्लिम शोधकर्ताओं ने की मदद

Islamic Farming Technique: इजरायल के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसा अनोखा तरीका खोज निकाला है, जो 9वीं से 12वीं सदी के इस्लामिक समय में विकसित किया गया था। यह तकनीक उन रेतीले और सूखे इलाकों में खेती को संभव बनाती थी, जहां पानी लगभग न के बराबर था। “इस्लामिक खेती तकनीक” और “पुरानी सिंचाई प्रणाली” (Ancient Irrigation System) जैसे विषय इस अध्ययन का मुख्य आधार बने।

तकनीक का इतिहास

यह तकनीक उस समय से संबंधित है जब आधुनिक इजरायल का अस्तित्व भी नहीं था। इस्लामिक सभ्यता ने तब रेगिस्तानी इलाकों में न केवल खेती की बल्कि पानी को संरक्षित कर फसल उत्पादन को बढ़ावा दिया। मध्यपूर्व के देश, जैसे ईरान, मिस्र और गाजा, इस तकनीक का उपयोग करते थे।

कैसे हुई इस तकनीक की खोज?

इजरायल के बार-इलान विश्वविद्यालय और यरूशलम स्थित इजरायल एंटीक्विटीज अथॉरिटी के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर गहन शोध किया। इसमें ईरान, गाजा, मिस्र और अल्जीरिया जैसे देशों के विशेषज्ञों ने सहयोग किया। इन शोधकर्ताओं ने यह समझने का प्रयास किया कि कैसे पानी बचाने और रेतीली मिट्टी को उपजाऊ बनाने की इस तकनीक ने सदियों तक रेगिस्तानी क्षेत्रों में खेती को संभव बनाया।

यह तकनीक कैसे काम करती है?

इस्लामिक खेती तकनीक में प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाता है। इसमें बारिश के पानी और सतह के नीचे मौजूद जल को संरक्षित कर फसलों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। यह तकनीक सतह पर पानी छिड़कने की बजाय उसे जड़ों तक सीमित कर पानी की बर्बादी को रोकती है।

इस प्रक्रिया में जैविक सामग्री और शहरी कचरे का इस्तेमाल कर मिट्टी की परत को उपजाऊ बनाया जाता है। इससे फसलें जैसे तरबूज, खजूर, अंगूर और सब्जियां उगाई जाती हैं।

आधुनिक समय में उपयोगिता

आज के दौर में जब दुनिया भर में जल संकट और खाद्य असुरक्षा की समस्या बढ़ रही है, इस पुरानी तकनीक को अपनाना बेहद फायदेमंद हो सकता है। सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में यह तकनीक खेती के लिए स्थायी समाधान प्रदान कर सकती है।

मुस्लिम शोधकर्ताओं का योगदान

इस अध्ययन की सबसे खास बात यह है कि इसमें मुस्लिम शोधकर्ताओं की पारंपरिक जानकारी का बड़ा योगदान है। शोधकर्ताओं ने एनवायर्नमेंट आर्कियोलॉजी में प्रकाशित अपने शोधपत्र में लिखा कि उन्होंने इन विशेषज्ञों की परंपरागत ज्ञान और सिंचाई विधियों से बहुत कुछ सीखा।

भविष्य की संभावना

अगर इस तकनीक को आधुनिक उपकरणों के साथ जोड़ा जाए, तो यह न केवल खेती को आसान बनाएगी बल्कि पानी की कमी और खाद्य असुरक्षा जैसी वैश्विक समस्याओं का समाधान भी देगी।


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