Chhagan Bhujbal: महाराष्ट्र की राजनीति में छगन भुजबल का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। उनकी कहानी संघर्ष और साहस की एक मिसाल है, जो बताती है कि मेहनत और लगन से इंसान कहां से कहां तक पहुंच सकता है। बचपन में सब्ज़ियां बेचने वाले इस व्यक्ति ने न केवल महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बनाई, बल्कि ओबीसी वर्ग के लिए एक मजबूत नेता के तौर पर उभरे।
राजनीतिक सफर की शुरुआत: शिवसेना से पहला कदम
छगन भुजबल का जन्म 1947 में हुआ। 1960 के दशक में उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शिवसेना से शुरू किया। बायकुला इलाके में सब्ज़ी बेचने वाले भुजबल, बाला साहेब ठाकरे के विचारों और भाषणों से गहराई से प्रभावित थे। ठाकरे के साथ काम करते हुए उन्होंने अपनी पहचान बनानी शुरू की। वह मुंबई नगर निगम से कॉर्पोरेटर बने और आगे चलकर मुंबई के मेयर के रूप में चुने गए।
उनका ओबीसी समुदाय से होना उनकी राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। उन्होंने शिवसेना में रहते हुए पार्टी के भीतर अपनी जगह बनाई और एक मजबूत नेता के तौर पर उभरे।
बगावत और नई राह
1990 में जब बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया, तो भुजबल ने असहमति जताई। यह असहमति इतनी बढ़ गई कि 1991 में उन्होंने 18 विधायकों के साथ शिवसेना छोड़कर अलग पार्टी बना ली। इस कदम ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला दिया।
कुछ समय बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जब शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाई, तो भुजबल ने उनके साथ जुड़ने का फैसला किया। उनकी वफादारी का इनाम उन्हें 1999 में महाराष्ट्र का उपमुख्यमंत्री बनकर मिला।
ओबीसी राजनीति का नेतृत्व
भुजबल का नाम महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय के प्रमुख नेताओं में आता है। उन्होंने अपने समुदाय के अधिकारों के लिए न केवल आवाज उठाई, बल्कि उनके लिए सामाजिक और राजनीतिक मंच भी तैयार किया। अखिल भारतीय महात्मा फुले समता परिषद के प्रमुख के तौर पर उन्होंने ओबीसी समुदाय के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
विवादों से नाता
भुजबल का राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 2002 में उन्होंने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के खिलाफ कार्रवाई करते हुए बाल ठाकरे की गिरफ्तारी का आदेश दिया। इस घटना ने शिवसेना और भुजबल के बीच संबंधों को पूरी तरह से तोड़ दिया।
भुजबल का नाम कई बार विवादों में आया, लेकिन इससे उनकी राजनीतिक यात्रा रुकने की बजाय और मजबूत होती गई।
आज की स्थिति और नई चुनौती
आज छगन भुजबल एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन हाल के दिनों में वह पार्टी से असंतुष्ट नजर आए। अजित पवार द्वारा नई सरकार में भुजबल को मंत्री पद न दिए जाने से उनकी नाराजगी साफ झलकती है। नासिक में उन्होंने साफ कहा, “मैं किसी का खिलौना नहीं हूं।” यह बयान उनकी राजनीति में नए बदलाव की ओर इशारा करता है।
एक प्रेरणा: फर्श से अर्श तक का सफर
छगन भुजबल की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो जीवन में संघर्ष कर रहा है। सब्ज़ी बेचने से लेकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बनने तक, उनकी यात्रा साबित करती है कि मेहनत और सही दिशा से सब कुछ संभव है। वह न केवल एक नेता हैं, बल्कि एक विचारधारा हैं, जो बताती है कि अगर आप खुद पर विश्वास करते हैं, तो आप किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।
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