Commenting on Body Structure: आज के दौर में महिलाओं की गरिमा को बनाए रखना और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों पर सख्त कानून लागू करना बेहद जरूरी है। हाल ही में, केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी महिला के ‘बॉडी स्ट्रक्चर’ पर टिप्पणी करना यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) के समान है। यह फैसला न केवल एक कानूनी दृष्टिकोण है, बल्कि समाज को चेतावनी भी देता है कि महिलाओं की इज्जत के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
यौन उत्पीड़न की परिभाषा को व्यापक बनाना
केरल हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि किसी महिला के फिगर (Body Structure) पर टिप्पणी करना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी टिप्पणियां महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से की जाती हैं।
इस मामले में, आरोपी ने यह तर्क दिया था कि “शारीरिक संरचना की तारीफ” को यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता। हालांकि, अदालत ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि इस तरह की बातें न केवल आपत्तिजनक हैं, बल्कि महिला की शील भंग (Outrage her modesty) करने का भी प्रयास हैं।
Commenting on Body Structure: क्या था पूरा मामला?
यह मामला केरल राज्य विद्युत बोर्ड (KSEB) के एक पूर्व कर्मचारी से जुड़ा है। एक महिला सहकर्मी ने आरोप लगाया कि आरोपी ने 2013 से लेकर 2017 तक न केवल अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया, बल्कि आपत्तिजनक संदेश और वॉयस कॉल के जरिए उसे परेशान भी किया।
महिला ने इस दौरान कई बार शिकायत दर्ज कराई, लेकिन आरोपी का व्यवहार जारी रहा। इसके बाद, पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न), धारा 509 (शील भंग करने वाली टिप्पणी), और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 120 (ओ) के तहत मामला दर्ज किया।
अदालत का स्पष्ट रुख
अभियुक्त ने मामले को खारिज करने की याचिका दायर की थी। उसने दावा किया कि शारीरिक संरचना की तारीफ करना यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता।
हालांकि, हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के तर्कों से सहमति जताई। अदालत ने कहा कि ऐसे मामले प्रथम दृष्टया यौन उत्पीड़न के तहत आते हैं। इसके अलावा, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की हरकतें महिलाओं के आत्म-सम्मान और उनकी गरिमा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से की जाती हैं।
महिलाओं की गरिमा की रक्षा का संदेश
केरल हाईकोर्ट का यह फैसला एक सख्त संदेश है कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी या व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह फैसला कानूनी तौर पर भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को प्राथमिकता देता है।
यह समाज के लिए एक सीख भी है कि महिलाओं की इज्जत करना न केवल कानूनी, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है।
यह फैसला इस बात की याद दिलाता है कि यौन उत्पीड़न केवल शारीरिक हरकतों तक सीमित नहीं है, बल्कि शब्दों और टिप्पणियों के जरिए भी किया जा सकता है। महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा करना सिर्फ कानून की नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है।
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