ऑप्शन ट्रेडिंग में तेज़ी से जोखिम भी बढ़ रहे हैं। इसे देखते हुए भारत के प्रमुख वित्तीय नियामकों (रेगुलेटर्स) ने एक अहम फैसला लिया है। वो डेरिवेटिव बाजारों में हो रही इस तेज़ ट्रेडिंग के जोखिमों का पता लगाने के लिए एक कमिटी बनाने जा रहे हैं। कमिटी जरूरत पड़ने पर कुछ नीतिगत बदलावों की सिफारिश भी कर सकती है।
क्या है डेरिवेटिव मार्केट? डेरिवेटिव बाज़ार में शेयर, बॉन्ड आदि की कीमतों के उतार-चढ़ाव पर दांव लगाया जाता है। इसे थोड़ा मुश्किल माना जाता है, पर रिटर्न भी ज्यादा हो सकता है।
पिछले कुछ सालों में बदलाव: भारत में पिछले पांच साल में ऑप्शन ट्रेडिंग काफी बढ़ी है। इसमें खासकर छोटे निवेशकों ने खूब पैसा लगाया है।
समिति क्यों बनाई जा रही है? छोटे निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ने के साथ-साथ डेरिवेटिव बाज़ार में कुछ जोखिम भी बढ़ गए हैं। सरकार इन्हीं संभावित खतरों का आकलन कराना चाहती है ताकि समय रहते कदम उठाए जा सकें।
समिति क्या करेगी? यह समिति ये पता लगाने की कोशिश करेगी कि जोखिम कितना बड़ा हो सकता है, निवेशकों को सुरक्षित रखने के क्या उपाय किए जा सकते हैं, और क्या रेगुलेटर्स को इस पर और ज्यादा नज़र रखने की जरूरत है।
समिति का गठन: यह समिति वित्त मंत्री, केंद्रीय बैंक के गवर्नर और मार्केट रेगुलेटर्स वाली वित्तीय स्थिरता विकास परिषद (FSDC) द्वारा बनाई जाएगी।
बढ़ती चिंताएं: सरकार का यह फैसला दिखाता है कि ऑप्शन ट्रेडिंग को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। आम निवेशकों के लिए यह बाज़ार समझना मुश्किल हो सकता है, और नुकसान होने का खतरा रहता है।
समिति से और क्या उम्मीद है? कमिटी छोटे असुरक्षित ऋणों (unsecured loans) और ऑप्शन ट्रेडिंग के बीच के संबंधों पर भी गौर करेगी। कई बार लोग इस तरह के लोन लेकर जोखिम भरे बाजारों में लगा देते हैं।