Dr. Ambedkar’s Political Struggles: डॉ. भीमराव आंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में जाना जाता है, ने अपनी राजनीति के दौरान कई कठिनाइयों का सामना किया। उनका दो बार लोकसभा चुनाव हारना इस बात का प्रमाण है कि राजनीति में संघर्ष और हार-जीत का सिलसिला निरंतर चलता रहता है। यह कहानी न केवल उनके राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है बल्कि भारत के राजनीतिक इतिहास में भी एक अनोखी झलक प्रस्तुत करती है।
1952 के पहले लोकसभा चुनाव में, डॉ. आंबेडकर ने शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपनी दावेदारी पेश की। यह वह समय था जब कांग्रेस का प्रभुत्व पूरे देश पर छाया हुआ था। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने हर वर्ग के समर्थन से चुनाव में अपराजेय स्थिति बना रखी थी। डॉ. आंबेडकर, जो अनुसूचित जातियों के अधिकारों के लिए हमेशा खड़े रहे, कांग्रेस के नारायण एस काजरोलकर से हार गए।
पहले लोकसभा चुनाव में हार
पहले लोकसभा चुनाव में बंबई क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए, डॉ. आंबेडकर को उम्मीद थी कि उनका जनाधार उन्हें जीत दिलाएगा। लेकिन कांग्रेस ने एक रणनीतिक चाल चलते हुए नारायण एस काजरोलकर को उनके सामने उतारा। काजरोलकर, जो पिछड़ी जाति से आते थे, ने कांग्रेस की लोकप्रियता के सहारे 15,000 वोटों से जीत हासिल की। डॉ. आंबेडकर इस चुनाव में चौथे स्थान पर रहे, और यह हार उनके लिए गहरी निराशा का कारण बनी।
दूसरा चुनाव: बंडारा सीट से हार
1954 में बंडारा लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में डॉ. आंबेडकर ने अपनी किस्मत फिर आज़माई। इस बार भी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के दम पर जीत हासिल की। हालांकि हार का अंतर कम था, लेकिन यह हार डॉ. आंबेडकर के लिए व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से और भी निराशाजनक रही।
हार के कारण: क्या कांग्रेस थी जिम्मेदार?
डॉ. आंबेडकर की हार के पीछे कई कारण थे। पहला, कांग्रेस उस समय सबसे मजबूत राजनीतिक दल थी, और उसके पास संगठनात्मक ताकत के साथ-साथ जनता का विश्वास भी था। दूसरा, डॉ. आंबेडकर की पार्टी अपेक्षाकृत नई थी और उसे व्यापक जनसमर्थन नहीं मिल पाया। कांग्रेस ने आंबेडकर के खिलाफ चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी थी, और यहां तक कि नेहरू ने खुद उनके खिलाफ प्रचार किया।
हार के बाद का समय और प्रभाव
डॉ. आंबेडकर इन चुनावी हारों से मानसिक रूप से काफी प्रभावित हुए। लगातार हार और राजनीतिक असफलता के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। बावजूद इसके, उन्होंने अनुसूचित जातियों और वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। लेकिन उनकी यह असफलता उनके राजनीतिक जीवन के अंत की शुरुआत साबित हुई।
डॉ. भीमराव आंबेडकर का लोकसभा चुनाव हारना (Dr. Ambedkar’s Political Struggles) उनके राजनीतिक जीवन का एक ऐसा अध्याय है, जो उनकी चुनौतियों और संघर्षों को दर्शाता है। इन हारों के बावजूद, उन्होंने जो संविधान भारत को दिया, वह आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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