दुनियाभर में नए वायरस और बीमारियों का फैलना आम बात हो गई है। हाल ही में चीन में ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस (Human metapneumovirus) का प्रसार हुआ, जिसने कई देशों को सतर्क कर दिया। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन बीमारियों के नाम जानवरों से क्यों जोड़े जाते हैं? क्या नामकरण का कोई वैज्ञानिक आधार है, या ये सिर्फ संयोग है? इस लेख में हम इन सवालों के जवाब जानेंगे और जानेंगे कि वायरस का नाम कैसे रखा जाता है (How virus names are given) ।
वायरस नामकरण का जिम्मा किसका है?
जब कोई नया वायरस सामने आता है, तो उसका नामकरण इंटरनेशनल कमेटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ वायरस (ICTV) करती है। ICTV का मुख्य कार्य वायरस की आनुवंशिक संरचना के आधार पर उन्हें वर्गीकृत और नामित करना है। ये नामकरण टीकों और दवाओं के विकास को आसान बनाने के लिए आवश्यक होता है। अक्सर माइक्रोस्कोप में वायरस की बनावट और गुणों का विश्लेषण भी नामकरण में अहम भूमिका निभाते हैं।
जानवरों के नाम पर क्यों रखे जाते हैं वायरस के नाम?
कई बार वायरस जानवरों से इंसानों में फैलते हैं। इन्हें ज़ूनोटिक रोग (Zoonotic diseases) कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर, मंकीपॉक्स (Monkeypox) एक ऐसा वायरस है जो बंदरों से फैलता है। इसी तरह पैरट फीवर (Parrot fever) पक्षियों के संपर्क में आने से होता है। जब कोई बीमारी किसी विशेष जानवर से जुड़ी होती है, तो वैज्ञानिक उस जानवर का नाम वायरस के साथ जोड़ देते हैं ताकि बीमारी के स्रोत की पहचान आसान हो सके।
रैबिट फीवर और पैरट फीवर
रैबिट फीवर (Rabbit fever) को तुलारेमिया भी कहा जाता है। ये एक बैक्टीरियल संक्रमण है जो खरगोशों और अन्य छोटे स्तनधारियों से इंसानों में फैलता है। इसी प्रकार, पैरट फीवर (Parrot fever) का कारण क्लेमाइडिया बैक्टीरिया है, जो पक्षियों से मनुष्यों में संक्रमण का कारण बनता है। इन नामों से ये स्पष्ट हो जाता है कि बीमारी का संबंध किस जानवर से है।
नामकरण से कैसे मिलती है सहायता?
जब वायरस का नाम जानवर के नाम पर रखा जाता है, तो यह न केवल बीमारी के स्रोत का पता लगाने में मदद करता है बल्कि रोकथाम के उपायों को भी स्पष्ट करता है। उदाहरण के लिए, बर्ड फ्लू (Bird flu) से प्रभावित होने से बचने के लिए पक्षियों के संपर्क से दूर रहना आवश्यक है।
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