गुरु
मिट्टी सी भोली थी मैं,
आकार तुम्हीं से पाया,
अपने ज्ञान के प्रकाश से,
आपने इस बीज को पौधा बनाया।
धैर्य और प्रयास से आपने,
मेरे हर गुण को क्या खूब तराशा।
आपके अनुभवों के सिंचन से,
फिर मैं एक पेड़ सा लहलहाया।
सतत साथ से ही, मैं अपनी जड़ों से यूँ जुड़ पाया।
प्रोत्साहन से आपके मैंने, आज ये व्यक्तित्व पाया।
ऋणी रहूंगी हर क्षण आपकी,
जीवन का जो बोध कराया।
मन से करूँ मैं वंदन आपको,
गुरु, आपने मुझे कितना सिखाया।
लेखिका – शिप्रा मोहता