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Hyperloop in India: 30 मिनट में 350 किमी! देश का पहला हाइपरलूप ट्रैक क्या है?

Hyperloop in India: 30 मिनट में 350 किमी! देश का पहला हाइपरलूप ट्रैक क्या है?

Hyperloop in India: भारत अब अत्याधुनिक और तेज़ परिवहन तकनीकों की दिशा में एक बड़ा कदम उठा रहा है। बुलेट ट्रेन के बाद, अब हाइपरलूप ट्रैक (Hyperloop Track) ने देश के परिवहन क्षेत्र में उत्सुकता बढ़ा दी है।

यह तकनीक न केवल यात्रा को तेज बनाएगी बल्कि इसे पर्यावरण के अनुकूल और किफायती विकल्प के रूप में प्रस्तुत करेगी। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में सोशल मीडिया पर भारत के पहले हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक की झलक साझा की। यह ट्रैक, जो 410 मीटर लंबा है, भारत को हाइपरलूप तकनीक में वैश्विक पहचान दिलाने की ओर बढ़ा रहा है।


हाइपरलूप ट्रैक: क्या है यह अनोखी तकनीक?

हाइपरलूप (Hyperloop) एक ऐसी परिवहन प्रणाली है जो उच्च गति पर यात्रियों और माल को वैक्यूम ट्यूब में बंद कैप्सूल के जरिए ले जाने का वादा करती है। इसकी खास बात यह है कि इसमें हवा का प्रतिरोध नहीं होता, जिससे यह सिस्टम ट्रेन या फ्लाइट से भी तेज़ हो सकता है।

इसकी पहली झलक 2020 में अमेरिका के लास वेगास में देखने को मिली, जहां वर्जिन हाइपरलूप (Virgin Hyperloop) ने 500 मीटर लंबे ट्रैक पर 161 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से एक पॉड का सफल परीक्षण किया। हाइपरलूप का विचार पहली बार एलन मस्क ने 2013 में पेश किया था। उनका मानना था कि हमें धरती पर एक ऐसी परिवहन प्रणाली बनानी चाहिए जो फ्लाइट से भी तेज हो और यात्रा के समय को बहुत कम कर दे।


भारत में हाइपरलूप: कौन कर रहा है काम?

भारत में हाइपरलूप तकनीक (Hyperloop Technology) को विकसित करने का जिम्मा भारतीय रेलवे और IIT मद्रास ने मिलकर उठाया है। IIT मद्रास के डिस्कवरी कैंपस में बने इस टेस्ट ट्रैक को अविष्कार हाइपरलूप टीम और TuTr हाइपरलूप स्टार्टअप के सहयोग से बनाया गया है।

शुरुआती परीक्षण में इस ट्रैक पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की गति दर्ज की गई। लेकिन भविष्य में इसे 600 किलोमीटर प्रति घंटे तक टेस्ट किया जाएगा। यदि यह प्रणाली सफल रहती है, तो यह भारत में परिवहन का चेहरा पूरी तरह बदल सकती है।


हाइपरलूप क्यों है भारत के लिए अहम?

भारत में हाइपरलूप ट्रैक (Hyperloop Track) का आगमन कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  1. पर्यावरण के अनुकूल: हाइपरलूप कम ऊर्जा खपत करता है और कार्बन उत्सर्जन को घटाने में मदद करता है।
  2. तेज़ और किफायती: यह समय और पैसे दोनों की बचत करता है। 350 किलोमीटर की यात्रा केवल 30 मिनट में पूरी हो सकती है।
  3. रोजगार के नए अवसर: इस तकनीक को अपनाने से भारत में नई नौकरियों का सृजन होगा।
  4. ग्लोबल लीडरशिप: हाइपरलूप तकनीक में निवेश भारत को वैश्विक परिवहन प्रौद्योगिकी में अग्रणी बना सकता है।

दुनिया में हाइपरलूप: भारत कैसे है खास?

हाइपरलूप तकनीक का उपयोग कई देशों में हो रहा है। यूरोप में इसका सबसे लंबा टेस्ट ट्रैक बनाया गया है, जो भविष्य में 10,000 किलोमीटर तक का नेटवर्क जोड़ने की योजना बना रहा है।

लेकिन भारत का यह कदम खास इसलिए है क्योंकि यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल, स्वदेशी प्रयासों और नवीनता के साथ विकसित की जा रही है। यह भविष्य में रेलवे के विकल्प के रूप में उभर सकता है, जो भारतीय परिवहन को वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।

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