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क्या जम्मू-कश्मीर में ‘हराम’ से ‘हलाल’ हो गए चुनाव?

क्या जम्मू-कश्मीर में 'हराम' से 'हलाल' हो गए चुनाव?
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जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। जो लोग कभी चुनाव को ‘हराम’ कहते थे, वे आज चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं। यह बदलाव कैसे आया और इसका क्या मतलब है? आइए जानते हैं।

पुराना समय, नई सोच

कुछ साल पहले तक, जम्मू-कश्मीर में कुछ नेता चुनाव का विरोध करते थे। वे कहते थे कि चुनाव में हिस्सा लेना गलत है। लेकिन अब वही लोग चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। यह बदलाव क्यों आया?

सैयद सलीम गिलानी, जो पहले अलगाववादी नेता थे, अब PDP पार्टी में शामिल हो गए हैं। उन्होंने कहा, “PDP मेल-मिलाप की बात करती है। युवाओं की बात करती है। इसलिए मुझे लगा कि मैं यहां बेहतर काम कर सकता हूं।”

बदलाव के कारण

इस बड़े बदलाव के पीछे कई कारण हैं:

  1. समय का बदलाव: गिलानी ने कहा, “समय के साथ राजनीति के तरीके भी बदल जाते हैं।” यानी, जो पहले सही लगता था, वह अब शायद उतना कारगर नहीं है।
  2. लोकतंत्र का महत्व: कई नेताओं को लगने लगा है कि लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए चुनाव एक अच्छा मंच है।
  3. सरकारी नीतियां: कुछ लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार की नीतियों, जैसे अनुच्छेद 370 हटाना, ने भी इस बदलाव में मदद की है।

नेताओं की प्रतिक्रियाएं

इस बदलाव पर अलग-अलग नेताओं की अलग-अलग राय है:

  • बीजेपी के प्रवक्ता साजिद यूसुफ ने कहा, “यह सबसे बड़ा विकास है कि हराम और बहिष्कार का नारा देने वाले लोग आज काम की धारा में शामिल हो रहे हैं।”
  • उमर अब्दुल्ला ने कहा, “कहीं न कहीं उनकी विचारधारा बदल गई है और हमने जो कहा वह सही साबित हुआ है।”
  • PDP युवा अध्यक्ष वाहिद पारा ने कहा, “अगर हमें पता होता कि जमात-ए-इस्लामी चुनाव लड़ेगी, तो पीडीपी ने उन्हें अपना निर्वाचन क्षेत्र भी दे दिया होता।”

क्या यह बदलाव अच्छा है?

इस बदलाव के फायदे और नुकसान दोनों हो सकते हैं:

फायदे:

  • ज्यादा लोगों की आवाज सुनी जा सकती है।
  • हिंसा की जगह बातचीत का रास्ता खुल सकता है।
  • क्षेत्र में शांति और विकास की संभावना बढ़ सकती है।

चुनौतियां:

  • पुराने मतभेद नए रूप में सामने आ सकते हैं।
  • कुछ लोग इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाएंगे।
  • नए नेताओं को अपनी विश्वसनीयता साबित करनी होगी।

जम्मू-कश्मीर में यह नया बदलाव एक नई शुरुआत की तरह है। इससे वहां के लोगों को अपने विचार रखने का एक नया मंच मिला है। लेकिन यह भी जरूरी है कि सभी पक्ष एक-दूसरे की बात सुनें और समझें। तभी वहां सच्चे मायने में शांति और विकास हो सकता है।

जम्मू-कश्मीर में चुनावी माहौल बदल रहा है। जो लोग कभी चुनाव का विरोध करते थे, वे आज चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं। यह बदलाव दिखाता है कि लोकतंत्र की ताकत कितनी बड़ी है। अब देखना यह है कि यह नया बदलाव वहां के लोगों के लिए क्या लेकर आता है।

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