हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में वृद्धि हुई है। डोडा में हुए हमले में कैप्टन बृजेश थापा, नायक डी. राजेश, सिपाही बिजेन्द्र, और सिपाही अजय शहीद हो गए। जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होते ही सीमा पार की हलचल भी तेज हो गई है। आतंकी कश्मीर की बजाय अब जम्मू पर फोकस कर रहे हैं, क्योंकि अमरनाथ यात्रा के कारण कश्मीर में सुरक्षा कड़ी है।
आतंकियों को कैसे मिलती है मदद?
कुछ स्थानीय लोग पैसों के लालच में आतंकियों की मदद कर रहे हैं। जैसे, कुछ दिन पहले श्रद्धालुओं की बस पर हुए हमले में एक स्थानीय व्यक्ति ने 6,000 रुपये लेकर आतंकियों की मदद की थी। ऐसे लोग आतंकियों के लिए जासूसी करते हैं और देश का नुकसान करते हैं।
आतंकियों का नया पैटर्न
जम्मू-कश्मीर में आतंकी अब नए नामों और अलग-अलग इलाकों में सक्रिय हो रहे हैं। डोडा, किश्तवाड़, रियासी और कठुआ जैसे क्षेत्रों में सेना की टुकड़ियों की कमी के बाद आतंकी गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है। लगभग 25 आतंकियों का एक ग्रुप पूरे इलाके में सक्रिय है, जो पाकिस्तानी समर्थित हैं और नए नामों से काम कर रहे हैं।
आतंकियों का लोकल सपोर्ट
आतंकियों को स्थानीय लोगों का समर्थन मिल रहा है। रिटायर्ड मेजर जनरल ए.के. सिवाच के अनुसार, आतंकी तब तक किसी क्षेत्र में रह सकते हैं जब तक उन्हें स्थानीय लोगों का सपोर्ट है। कुछ लोग धर्म के कारण और कुछ लोग आर्थिक कारणों से आतंकियों की मदद करते हैं।
डोडा का भौगोलिक फायदा
डोडा के घने जंगल और पहाड़ आतंकियों के लिए छिपने की उत्तम जगह हैं। अमरनाथ यात्रा की वजह से कश्मीर में सुरक्षा कड़ी होने के कारण आतंकियों ने जम्मू के अलग-अलग इलाकों में साजिशें रचनी शुरू कर दी हैं। डोडा में हुए हमले की जिम्मेदारी ‘कश्मीर टाइगर’ नामक आतंकी संगठन ने ली है।
सेना की चुनौतियां
सेना के सामने कई चुनौतियां हैं। सोमवार को ही कुपवाड़ा के केरन में सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पर तीन आतंकियों को मार गिराया। आतंकियों के पास भारी मात्रा में हथियार भी मिले। ऐसे में आतंकियों को लोकल सपोर्ट मिलने से सेना के लिए चुनौती और भी बढ़ जाती है। निश्चित रूप से हर हाल में समाधान निकालना आवश्यक है।
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