Shiv Sena BJP alliance possibilities: महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से ही अनिश्चितताओं और बदलावों से भरी रही है। हाल ही में, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने एक बयान दिया, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। उन्होंने कहा कि “भाजपा के कई नेता उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ फिर से गठबंधन करना चाहते हैं।” उनके इस बयान के बाद महाराष्ट्र की सियासी फिजाओं में एक बार फिर अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या शिवसेना भाजपा गठबंधन संभावनाएं फिर से जीवंत हो सकती हैं?
हालांकि, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि किसी सामाजिक समारोह में नेताओं का मिलना-जुलना जरूरी नहीं कि राजनीतिक गठजोड़ का संकेत हो। उन्होंने संजय राउत के बयान को महज एक अटकल बताया और कहा कि भाजपा का शिवसेना से गठबंधन करने का कोई इरादा नहीं है।
शिवसेना और भाजपा के रिश्तों का इतिहास
महाराष्ट्र में महाराष्ट्र राजनीति (Maharashtra Politics) पर नजर डालें तो भाजपा और शिवसेना का रिश्ता दशकों पुराना है। दोनों दलों ने मिलकर लगभग 25 वर्षों तक सत्ता चलाई। भाजपा और बाल ठाकरे की शिवसेना ने हिंदुत्व के मुद्दे पर एक साथ चुनाव लड़ा और महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पकड़ बनाई।
हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद जब शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की मांग की और भाजपा ने उसे पूरा करने से इनकार कर दिया, तब दोनों दलों के रास्ते अलग हो गए। इसके बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे महाविकास अघाड़ी (MVA) कहा गया।
महाविकास अघाड़ी में उठापटक
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का यह गठबंधन शुरुआत में मजबूत नजर आया, लेकिन धीरे-धीरे इसमें दरारें दिखने लगीं। एनसीपी में ही दो गुट बन गए – एक शरद पवार का और दूसरा उनके भतीजे अजित पवार का। अजित पवार ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली और कई बड़े नेता उनके साथ चले गए।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना के पास अब पहले जैसी ताकत नहीं बची है। पार्टी के कई बड़े नेता एकनाथ शिंदे के साथ चले गए और भाजपा के साथ सरकार बना ली। इस वजह से शिवसेना कमजोर हो गई और अब उसे अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर नए विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं।
क्या भाजपा और शिवसेना फिर साथ आ सकते हैं?
राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। संजय राउत के बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई कि अगर शिवसेना भाजपा के साथ आना चाहे तो क्या भाजपा उसे स्वीकार करेगी?
इस सवाल का जवाब देना अभी मुश्किल है क्योंकि भाजपा के लिए शिवसेना अब पहले जैसी नहीं रही। शिवसेना दो भागों में बंट चुकी है – एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट। भाजपा ने पहले ही शिंदे गुट को समर्थन देकर सरकार बना ली है, तो फिर उद्धव ठाकरे की शिवसेना की जरूरत क्यों होगी?
हालांकि, राजनीति में समीकरण हमेशा बदलते रहते हैं। भाजपा को भी निकाय चुनावों में बड़ी जीत हासिल करनी है और अगर उसे लगे कि उद्धव ठाकरे के साथ आने से फायदा हो सकता है, तो वह इस संभावना पर विचार कर सकती है।
संजय राउत के बयान की वजह क्या है?
संजय राउत का बयान ऐसे समय आया है जब महाराष्ट्र में निकाय चुनाव होने वाले हैं। यह चुनाव भाजपा और महाविकास अघाड़ी के लिए काफी अहम हैं क्योंकि यह तय करेगा कि राज्य में लोगों का मूड किस तरफ है।
राउत ने कहा कि भाजपा के वरिष्ठ नेता चंद्रकांत पाटिल “शिवसेना-भाजपा के पुराने रिश्ते को समझते हैं” और यही वजह है कि कुछ नेता फिर से गठबंधन की इच्छा जता रहे हैं।
हाल ही में एक शादी समारोह में भाजपा और शिवसेना (उद्धव गुट) के कुछ नेता आपस में मजाक-मजाक में बात कर रहे थे। वहां भाजपा नेता चंद्रकांत पाटिल और शिवसेना नेता मिलिंद नार्वेकर के बीच बातचीत हुई, जिस पर संजय राउत ने बयान दिया।
भाजपा का रुख क्या है?
भाजपा इस पूरे मुद्दे पर शांत नजर आ रही है। देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि किसी शादी समारोह में मिलने का मतलब यह नहीं कि गठबंधन की बात चल रही हो। उन्होंने इसे सिर्फ एक अफवाह बताया।
लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ भी संभव है। उद्धव ठाकरे की पार्टी अब कमजोर है और भाजपा को आने वाले चुनावों में नगर निगमों में अपनी पकड़ मजबूत करनी है। ऐसे में, अगर भविष्य में कोई राजनीतिक फायदा दिखे तो भाजपा अपने फैसले बदल सकती है।
फिलहाल, शिवसेना और भाजपा के गठबंधन की संभावनाएं सिर्फ अटकलों तक ही सीमित हैं। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में समीकरण हर समय बदलते रहते हैं। शिवसेना के लिए भाजपा के साथ आना अब इतना आसान नहीं है क्योंकि उसकी छवि एक अस्थिर पार्टी की बन चुकी है।
आने वाले निकाय चुनाव यह तय करेंगे कि शिवसेना, भाजपा और महाविकास अघाड़ी में से कौन मजबूत है और कौन कमजोर। अगर चुनावों में भाजपा को भारी बढ़त मिलती है, तो उसे शिवसेना (उद्धव गुट) की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन अगर शिवसेना का प्रदर्शन अच्छा रहता है, तो गठबंधन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।
राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। शिवसेना और भाजपा का भविष्य आने वाले महीनों में तय होगा। महाराष्ट्र की राजनीति के इन बदलावों पर सबकी नजर बनी रहेगी।
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