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Mandodari Ka Vivah: रावण की मौत के बाद उसकी पतिव्रता पत्नी मंदोदरी ने क्यों किया ‘दुश्मन देवर’ विभीषण से शादी, क्यों उसे लगा ये ठीक रहेगा

Mandodari Ka Vivah: रावण की मौत के बाद उसकी पतिव्रता पत्नी मंदोदरी ने क्यों किया 'दुश्मन देवर' विभीषण से शादी, क्यों उसे लगा ये ठीक रहेगा

Mandodari Ka Vivah: रामायण की कथा में अनेक प्रसंग ऐसे हैं जो हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग है रावण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी मंदोदरी और उसके देवर विभीषण के विवाह का। इस घटना ने न केवल लंका के इतिहास को बदला, बल्कि यह भी दर्शाया कि उस समय की सामाजिक परंपराएँ कितनी गहरी और तार्किक थीं।

मंदोदरी, जो अपनी पवित्रता और धर्मनिष्ठा के लिए जानी जाती थी, एक आदर्श पत्नी थीं। जब रावण की मृत्यु हुई, तो लंका की स्थिति बेहद अस्थिर हो गई थी। इस अस्थिरता को दूर करने और लंका में स्थायित्व लाने के लिए भगवान राम ने विभीषण और मंदोदरी के विवाह का सुझाव दिया। यह प्रस्ताव उस समय जितना चौंकाने वाला था, उतना ही व्यावहारिक भी।


मंदोदरी की पृष्ठभूमि: अप्सरा से रानी बनने तक

मंदोदरी का जीवन आरंभ से ही संघर्ष और चुनौतियों से भरा था। पुराणों के अनुसार, मंदोदरी का पूर्व नाम मधुरा था। वह एक अप्सरा थीं, जो भगवान शिव की भक्ति में लीन थीं। लेकिन जब उन्होंने शिव को रिझाने की कोशिश की, तो पार्वती देवी ने उन्हें शाप दिया। इस शाप के कारण मधुरा को 12 वर्षों तक एक मेंढक के रूप में कुएं में रहना पड़ा।

यह शाप तब समाप्त हुआ जब असुरराज मायासुर और उनकी पत्नी ने तपस्या के दौरान मधुरा को कुएं में पाया। उन्होंने उसे अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया और उसका नाम मंदोदरी रखा। मंदोदरी अपने रूप, गुण, और धार्मिक आचरण के कारण असुर समाज में आदरणीय हो गईं।


रावण और मंदोदरी का विवाह

मंदोदरी का रावण के साथ विवाह भी विवादों और संघर्षों से भरा रहा। रावण ने मायासुर से मंदोदरी का हाथ मांगा, लेकिन जब मायासुर ने इनकार कर दिया, तो रावण ने बलपूर्वक मंदोदरी का अपहरण कर लिया। विवाह के बाद, मंदोदरी ने अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से किया और रावण के प्रति समर्पित रहीं।

हालांकि, मंदोदरी ने हमेशा धर्म और नैतिकता का पालन किया। जब रावण ने सीता का अपहरण किया, तो मंदोदरी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने रावण को समझाने की कोशिश की कि यह कदम उसके विनाश का कारण बनेगा। लेकिन रावण ने उनकी बात नहीं मानी, और अंततः राम-रावण युद्ध में रावण का अंत हुआ।


विभीषण और मंदोदरी का विवाह: नैतिकता और राजनीति का संगम

रावण की मृत्यु के बाद, लंका की सत्ता विभीषण को सौंपी गई। भगवान राम ने विभीषण को सलाह दी कि वह मंदोदरी से विवाह करें। इस प्रस्ताव को सुनकर मंदोदरी ने इसे पहले अस्वीकार कर दिया। उन्होंने इसे धर्म और समाज की दृष्टि से गलत माना।

लेकिन भगवान राम, सीता, और हनुमान ने मंदोदरी को समझाया कि यह विवाह केवल लंका में स्थायित्व लाने के लिए है। विभीषण और मंदोदरी का विवाह एक राजनीतिक निर्णय था, जो लंका के लोगों की भलाई के लिए किया गया।

इस विवाह ने लंका के शासकीय ढांचे को मजबूत किया और शत्रुता के बजाय मित्रता का मार्ग प्रशस्त किया। मंदोदरी ने इस निर्णय को अपनी बुद्धिमत्ता और धर्मनिष्ठा के आधार पर स्वीकार किया।


क्या था इस विवाह का महत्व?

इस विवाह का उद्देश्य पति-पत्नी के रूप में पारिवारिक जीवन से अधिक, लंका में शांति और समृद्धि लाना था। मंदोदरी ने यह समझा कि रावण की मृत्यु के बाद लंका को एक सशक्त और स्थिर नेतृत्व की आवश्यकता है। विभीषण ने भी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इस विवाह को सहर्ष स्वीकार किया।

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि उस समय व्यक्तिगत भावनाओं से अधिक सामाजिक और राजनीतिक कर्तव्यों को महत्व दिया जाता था। मंदोदरी और विभीषण का विवाह न केवल लंका के लोगों के लिए एक नई शुरुआत थी, बल्कि यह धर्म और राजनीति का अनोखा संगम भी था।


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