टाटा समूह के साथ दशकों से जुड़े नामों में से एक, नोएल टाटा, हाल ही में टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बनाए गए हैं। हालांकि उनके कंधों पर टाटा ट्रस्ट की बड़ी जिम्मेदारी है, फिर भी वह टाटा संस के चेयरमैन (Tata Sons Chairman) नहीं बन सकते, जिसका कारण टाटा समूह का एक आंतरिक कानून है जो इस पद की राह में रुकावट डालता है। यह कानून, जो रतन टाटा द्वारा स्थापित किया गया था, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति दोनों पदों पर एक साथ कब्जा नहीं कर सकता।
नोएल टाटा और टाटा समूह की विरासत
नोएल टाटा, जो रतन टाटा के सौतेले भाई हैं, टाटा समूह के इतिहास और विरासत से गहराई से जुड़े रहे हैं। साल 2024 में उन्हें टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन (Tata Trust Chairman) बनाया गया, जिससे उनके ऊपर टाटा ट्रस्ट की बड़ी जिम्मेदारियाँ आ गईं। लेकिन जब बात आती है टाटा समूह के सबसे बड़े निर्णयों की, तो उनके पास वह अधिकार नहीं है जो टाटा संस के चेयरमैन (Tata Sons Chairman) के पास होता है। इसके पीछे की मुख्य वजह है टाटा समूह का आंतरिक कानून (Tata Group’s internal law), जो 2022 में रतन टाटा के द्वारा स्थापित किया गया था। इस कानून के अनुसार, टाटा ट्रस्ट और टाटा संस के चेयरमैन की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति के पास नहीं हो सकती।
रतन टाटा ने यह फैसला इसलिए लिया था ताकि हितों के टकराव से बचा जा सके और टाटा समूह में कार्यों का निष्पक्ष संचालन हो सके। इससे यह भी सुनिश्चित किया गया कि टाटा समूह के विभिन्न पदों पर अलग-अलग लोगों की नियुक्ति हो, जिससे वे स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें और कोई भी व्यक्ति दोनों पदों की शक्ति का गलत उपयोग न कर सके।
नोएल टाटा की राह में आई मुश्किलें
नोएल टाटा को टाटा संस के चेयरमैन (Tata Sons Chairman) पद के लिए पहली बार रोका नहीं गया है। साल 2011 में भी, जब रतन टाटा के सेवानिवृत्त होने की खबरें सुर्खियों में थीं, तो नोएल टाटा का नाम भी प्रमुख उम्मीदवारों में से एक था। लेकिन तब यह जिम्मेदारी साइरस मिस्त्री को सौंपी गई, जो नोएल के साले भी थे। उसके बाद से ही नोएल के लिए टाटा संस के शीर्ष पद की राह हमेशा कठिन रही है।
साल 2022 में, जब टाटा समूह का आंतरिक कानून (Tata Group’s internal law) बना, तब से यह तय हो गया कि नोएल टाटा अब कभी भी टाटा संस के चेयरमैन नहीं बन सकते। इस कानून के अनुसार, कोई भी व्यक्ति एक समय में सिर्फ एक ही भूमिका निभा सकता है।
टाटा संस का महत्व और इसका नियंत्रण
टाटा संस (Tata Sons) टाटा समूह की सभी कंपनियों की होल्डिंग कंपनी है, जिसका मतलब है कि टाटा समूह की हर कंपनी में इसकी हिस्सेदारी है। टाटा ट्रस्ट, जिसकी टाटा संस में 66% हिस्सेदारी है, के चेयरमैन होने के नाते नोएल टाटा का समूह पर मजबूत नियंत्रण होता है, लेकिन टाटा संस के चेयरमैन का पद न होने के कारण वे सीधे तौर पर समूह की कंपनियों के संचालन में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। टाटा ट्रस्ट समूह के लाभ और विकास को तय करता है, लेकिन समूह की विभिन्न कंपनियों के फैसले और उनका दैनिक संचालन टाटा संस के चेयरमैन (Tata Sons Chairman) के द्वारा ही किया जाता है।
रतन टाटा, जो टाटा समूह के आखिरी व्यक्ति थे जिन्होंने दोनों पदों को संभाला, ने इस विभाजन को स्थायी करने के लिए यह निर्णय लिया ताकि टाटा समूह में शक्ति का संतुलन बना रहे।