लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणापत्र ‘न्याय पत्र’ जारी किया है, जिसमें विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वादे किए गए हैं। इस घोषणापत्र में पांच ‘न्याय के स्तंभ’ (युवा न्याय, नारी न्याय, किसान न्याय, श्रमिक न्याय और हिस्सेदारी न्याय) के तहत 25 गारंटी दी गई हैं।
मुख्य वादे:
सभी डिप्लोमा धारकों या 25 वर्ष से कम उम्र के स्नातकों को एक वर्ष की अप्रेंटिसशिप देने के लिए ‘राइट टू अप्रेंटिसशिप एक्ट’ पास करना।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी।
जम्मू और कश्मीर की राज्य स्थिति तुरंत बहाल करना।
अग्निपथ योजना को समाप्त करना।
राजस्थान मॉडल की नकदी रहित बीमा योजना को 25 लाख रुपये तक के लिए अपनाना, जिससे सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित हो।
राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी 400 रुपये प्रति दिन होगी।
महालक्ष्मी योजना की शुरुआत करना, जिससे हर गरीब भारतीय परिवार को प्रति वर्ष 1 लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे।
सरकारी, PSU में नियमित नौकरियों के ठेकेदारीकरण को समाप्त करना और ऐसी नियुक्तियों का नियमितीकरण सुनिश्चित करना।
इन वादों को लेकर चर्चा है कि यदि इन्हें वास्तव में लागू किया जाता है, तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन वादों को पूरा करने के लिए बड़े वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है। इसके अलावा, इन वादों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया और उनके प्रभावों पर भी विचार किया जा रहा है।
इस घोषणापत्र के जारी होने के बाद, राहुल गांधी ने जयपुर और हैदराबाद में सार्वजनिक रैलियों में इसके मुख्य तत्वों पर चर्चा की है। इस घोषणापत्र को लेकर जनता की प्रतिक्रिया मिश्रित है, कुछ लोग इसे आशाजनक मानते हैं जबकि अन्य इसे अव्यावहारिक और अत्यधिक महंगा बता रहे हैं। अंततः, यह चुनावी परिणामों पर निर्भर करेगा कि ये वादे जनता को कितना लुभा पाते हैं।