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Political Struggle on Foundation Day: जम्मू कश्मीर में नया सियासी संग्राम, स्थापना दिवस पर टूटी एकता, सीएम अब्दुल्ला की गैरमौजूदगी ने खड़े किए कई सवाल

Political Struggle on Foundation Day: जम्मू कश्मीर में नया सियासी संग्राम, स्थापना दिवस पर टूटी एकता, सीएम अब्दुल्ला की गैरमौजूदगी ने खड़े किए कई सवाल
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। कश्मीर विवाद गहराया (Kashmir Dispute Deepens) है, जहां पांचवें स्थापना दिवस पर उभरे विवाद ने क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति को और जटिल बना दिया है। यह विवाद केवल एक समारोह का नहीं, बल्कि क्षेत्र के भविष्य से जुड़े गंभीर मुद्दों का प्रतीक बन गया है।

राजनीतिक टकराव की गहराई

कश्मीर विवाद गहराया (Kashmir Dispute Deepens) इस बात से और स्पष्ट होता है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अनुपस्थिति ने कई राजनीतिक निहितार्थों को जन्म दिया है। लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने इस कदम को राजनीतिक दोहरेपन का उदाहरण बताया है। उन्होंने कहा कि जो नेता भारतीय संविधान की शपथ लेते हैं, उन्हें वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए।

क्षेत्रीय दलों का विरोध

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वे केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे को स्वीकार नहीं करेंगे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि उनकी मांग पूर्ण राज्य के दर्जे की है और इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इस बीच, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इस दिन को काला दिन घोषित किया है।

विशेषाधिकारों की मांग

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पुलवामा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के साथ जो हुआ है, वह अभूतपूर्व है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक क्षेत्र के विशेषाधिकार बहाल नहीं किए जाते, तब तक वे इस दिन को काला दिन मानेंगी। स्थापना दिवस पर राजनीतिक संघर्ष (Political Struggle on Foundation Day) की यह स्थिति क्षेत्र में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सामने नई चुनौतियां प्रस्तुत कर रही है।

सरकार का पक्ष

एलजी सिन्हा ने स्पष्ट किया कि सरकार एक निश्चित योजना के तहत काम कर रही है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के वादों के अनुसार, पहले परिसीमन का कार्य पूरा किया जाएगा। इसके बाद विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे और उचित समय पर राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।

विकास और सुरक्षा

केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से जम्मू-कश्मीर में विकास कार्यों में तेजी आई है। सड़कों, पुलों और बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। साथ ही, सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया गया है। हालांकि, राजनीतिक दल इन उपलब्धियों को अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं।

समाज पर प्रभाव

इस राजनीतिक विवाद का प्रभाव आम जनता पर भी पड़ रहा है। कुछ लोग विकास कार्यों से खुश हैं, तो कुछ विशेषाधिकारों की बहाली की मांग कर रहे हैं। व्यापारी वर्ग में भी मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ व्यापारियों का कहना है कि नई व्यवस्था से व्यापार में सुधार आया है, जबकि कुछ पुरानी व्यवस्था को बेहतर मानते हैं।

प्रशासनिक चुनौतियां

वर्तमान प्रशासन के सामने कई चुनौतियां हैं। एक तरफ विकास कार्यों को गति देनी है, तो दूसरी तरफ राजनीतिक विरोध से निपटना है। नौकरशाही को इस संतुलन को बनाए रखना होगा। साथ ही, आम जनता की आकांक्षाओं को भी ध्यान में रखना होगा।

जनता की आवाज

स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें विकास और विशेषाधिकार दोनों की जरूरत है। युवा वर्ग रोजगार और शिक्षा की बेहतर सुविधाओं की मांग कर रहा है। महिलाएं सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता की बात कर रही हैं। इन सभी मुद्दों को संतुलित करना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है।

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