राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और विपक्षी INDIA गठबंधन के बीच खींचतान एक नई ऊंचाई पर पहुंच गई है। विपक्षी दलों ने धनखड़ के खिलाफ राज्यसभा सभापति अविश्वास प्रस्ताव (Rajya Sabha Chairman No-Confidence Motion) पेश किया है। उनका आरोप है कि धनखड़ का रवैया पक्षपाती है और वे विपक्षी सदस्यों की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।
क्यों लाया गया अविश्वास प्रस्ताव?
विपक्ष का कहना है कि धनखड़ सदन की कार्यवाही को निष्पक्षता से संचालित नहीं कर रहे हैं। संसद के शीतकालीन सत्र में अडानी ग्रुप के खिलाफ आरोपों, मणिपुर हिंसा और संभल कांड जैसे मुद्दों को उठाने की अनुमति नहीं दी गई। इसके विपरीत, सत्तारूढ़ दल के सदस्यों को कांग्रेस और जॉर्ज सोरोस के बीच कथित संबंधों पर बात करने की अनुमति मिली। यह रवैया विपक्षी नेताओं के अनुसार, संसदीय लोकतंत्र की मर्यादा के खिलाफ है।
जगदीप धनखड़: एक संक्षिप्त परिचय
जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से शुरू हुआ, जहां उनकी विवादास्पद शैली ने उन्हें सुर्खियों में रखा। जुलाई 2022 में, धनखड़ ने उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराकर सबसे बड़ी जीत दर्ज की। हालांकि, वे उन कुछ उपराष्ट्रपतियों में से एक हैं जो राज्यसभा सांसद नहीं रहे।
विपक्ष और धनखड़ का टकराव
विपक्ष और धनखड़ का टकराव (Opposition and Dhankhar Clash) कोई नई बात नहीं है। अगस्त 2024 में, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे और सभापति के बीच तीखी बहस हुई थी। जब खरगे ने एक मुद्दा उठाने की कोशिश की, तो धनखड़ ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद विपक्ष ने सदन से वाकआउट कर दिया।
इसी साल, समाजवादी पार्टी की नेता जया बच्चन और धनखड़ के बीच भी नोकझोंक हुई थी। बच्चन ने धनखड़ के लहजे पर सवाल उठाया, जिसके जवाब में धनखड़ ने कहा कि सदन में अनुशासन जरूरी है।
संसद में अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत, राज्यसभा के सभापति को हटाने की प्रक्रिया शुरू होती है। प्रस्ताव को राज्यसभा में उपस्थित सदस्यों के आधे से एक ज्यादा सदस्यों का समर्थन चाहिए। इसके बाद, प्रस्ताव को लोकसभा में साधारण बहुमत से पारित करना होता है।
विपक्ष की मांग और सरकार का रुख
विपक्ष ने इस प्रस्ताव को “लोकतंत्र और संसदीय स्वतंत्रता” के लिए जरूरी कदम बताया है। वहीं, सत्तारूढ़ बीजेपी ने इसे “राजनीतिक नौटंकी” कहकर खारिज किया। विपक्ष का कहना है कि यह कदम उठाना उनके लिए मुश्किल था, लेकिन लोकतंत्र के हित में जरूरी था।
निष्पक्षता पर बहस
यह विवाद भारतीय संसदीय प्रणाली में निष्पक्षता और पारदर्शिता की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है। धनखड़ का कहना है कि वे संविधान और संसदीय परंपराओं के अनुसार काम कर रहे हैं। लेकिन विपक्ष की नजर में, उनके कार्य पक्षपाती हैं।
संसद में बढ़ता तनाव
यह घटनाक्रम न केवल राज्यसभा बल्कि पूरे भारतीय लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। धनखड़ और विपक्षी दलों के बीच यह टकराव संसद की गरिमा को बनाए रखने और लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए एक बड़ा इम्तिहान बन गया है।
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