SC-ST आरक्षण: सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो देश के सामाजिक ढांचे को नया रूप दे सकता है। सात जजों की बेंच ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण के नियमों में बड़ा बदलाव किया है। यह फैसला 1950 से चली आ रही व्यवस्था में पहली बार SC और ST गुट्रप के अंदर ही छोटे-छोटे गुट्रप बनाने की इजाजत देता है।
फैसले की बड़ी बातें
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला दिया। इस फैसले के मुताबिक, अब राज्य सरकारें SC और ST गुट्रप के अंदर ही छोटे-छोटे गुट्रप बना सकती हैं। इसका मकसद है कि इन गुट्रप में से जो सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं, उन्हें और ज्यादा मदद मिल सके।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2004 के एक पुराने फैसले को पलटता है। उस वक्त कोर्ट ने कहा था कि SC/ST लिस्ट एक ही तरह का गुट्रप है, जिसे और छोटे हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता।
क्यों आया यह फैसला?
इस फैसले के पीछे कई बड़े सवाल थे, जिन पर कोर्ट ने गौर किया। आइए इन सवालों को समझते हैं:
- क्या सभी SC जातियों को एक जैसा माना जाना चाहिए?
संविधान के आर्टिकल 341(1) के मुताबिक, राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वो किसी राज्य में किन जातियों को SC की लिस्ट में डालें। 2004 के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि SC को एक जैसा माना जाना चाहिए, क्योंकि संविधान ने उन सबके लिए एक जैसे फायदे सोचे थे।
लेकिन इस नए फैसले में, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सिर्फ राष्ट्रपति की लिस्ट में होने का मतलब यह नहीं कि सब एक जैसे हैं। उन्होंने कहा कि इस लिस्ट को और छोटे हिस्सों में बांटा जा सकता है।
- क्या राज्य सरकारें राष्ट्रपति की लिस्ट में बदलाव कर सकती हैं?
संविधान के आर्टिकल 15(4) और 16(4) के तहत राज्य सरकारें SC की तरक्की के लिए “खास इंतजाम” कर सकती हैं। 2004 के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि यह सिर्फ पढ़ाई और सरकारी नौकरियों में कोटा देने तक सीमित है।
लेकिन नए फैसले में कहा गया है कि राज्य सरकारें अपने अधिकारों का इस्तेमाल करके यह पता लगा सकती हैं कि कौन से गुट्रप ज्यादा पिछड़े हैं, और उनके लिए खास इंतजाम (जैसे आरक्षण) कर सकती हैं।
- छोटे गुट्रप बनाने के लिए क्या नियम होंगे?
राज्य सरकारों को छोटे गुट्रप बनाने के लिए ठोस कारण, सबूत और “सही” तर्क देने होंगे। चीफ जस्टिस ने कहा कि किसी भी तरह का प्रतिनिधित्व “असरदार प्रतिनिधित्व” होना चाहिए, सिर्फ “संख्या का प्रतिनिधित्व” नहीं। यानी राज्य सरकार को यह साबित करना होगा कि SC लिस्ट के बड़े गुट्रप से निकाला गया छोटा गुट्रप ज्यादा पिछड़ा है और उसका ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है।
- क्या ‘क्रीमी लेयर’ का नियम SC पर भी लागू होगा?
जस्टिस गवई ने कहा कि ‘क्रीमी लेयर’ का नियम SC (और ST) पर भी लागू होना चाहिए, जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) पर लागू होता है। इस नियम के तहत आरक्षण पाने के लिए एक आय सीमा तय की जाती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि आरक्षण का फायदा उन्हीं लोगों को मिले, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
राज्यों में प्रमुख SC-ST समुदाय
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग SC-ST समुदाय हैं। कुछ प्रमुख समुदायों की जानकारी इस प्रकार है:
- महाराष्ट्र: महार और मातंग सबसे बड़े SC समुदाय हैं। गोंड और भील बड़े जनजातीय समुदाय हैं।
- राजस्थान: मेघवाल सबसे बड़ा SC समुदाय है। मीणा सबसे प्रभावशाली जनजाति है।
- ओडिशा: खोंड सबसे बड़ा जनजातीय समूह है। पन सबसे प्रमुख SC समुदाय है।
- छत्तीसगढ़: गोंड सबसे प्रमुख जनजातीय समुदाय है।
- मध्य प्रदेश: SC की कुल आबादी 15.6% है। सबसे बड़े दलित समूह परंपरागत रूप से चमड़े का काम करते रहे हैं।
- पश्चिम बंगाल: राजबंशी सबसे बड़ा SC समूह है।
- गुजरात: वंकर सबसे प्रमुख दलित जाति है। भील सबसे बड़ा जनजातीय समूह है।
- असम: बोडो सबसे बड़ा जनजातीय समूह है।
यह फैसला भारत के सामाजिक ढांचे में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे SC-ST समुदायों के अंदर के वर्गों को अपनी स्थिति सुधारने का मौका मिल सकता है। हालांकि, इस फैसले को लागू करने में कई चुनौतियां भी हो सकती हैं। राज्य सरकारों को बहुत सावधानी से और न्यायसंगत तरीके से इस फैसले को लागू करना होगा।
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