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भारतीय ग्रंथों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने पर बवाल! शिक्षाविदों ने इसे बताया ‘ब्राह्मणीकरण’

स्कूली पाठ्यक्रम
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महाराष्ट्र सरकार के नए स्कूली पाठ्यक्रम में भारतीय प्राचीन ग्रंथों को शामिल करने की बात चल रही है। इस प्रस्ताव में भगवद् गीता, मनाचे श्लोक और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को बच्चों को पढ़ाने की बात कही गई है। लेकिन शिक्षा जगत में इस फैसले पर बवाल मच गया है।

मनुस्मृति का ज़िक्र क्यों?
नए पाठ्यक्रम के मसौदे में ‘मूल्य शिक्षा’ के चैप्टर की शुरुआत मनुस्मृति के एक श्लोक से की गई है। मनुस्मृति एक प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ है, जिसमें सामाजिक व्यवस्था के बारे में बताया गया है। लेकिन मनुस्मृति के इस संदर्भ को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये जानबूझकर किया गया है या फिर ये सिर्फ एक राजनीतिक भूल है।

क्या है शिक्षाविदों की राय?
कई शिक्षाविदों का कहना है कि ऐसे कई संस्कृत श्लोक हैं जो इसी तरह के अर्थ देते हैं, लेकिन मसौदे में मनुस्मृति के श्लोक को ही क्यों चुना गया? उनका मानना है कि ये फैसला समाज के कुछ वर्गों को ठेस पहुंचा सकता है।

‘भारतीय ज्ञान’ क्या है? 
प्रस्तावित पाठ्यक्रम में 6ठी कक्षा से ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली’ (IKS) का एक कोर्स शामिल करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा, सभी कक्षाओं में भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए IKS को शामिल करने की बात कही गई है।

क्या सिर्फ ‘भारतीय ज्ञान’ ही काफी है?
शिक्षाविद् वसंत कलपांडे का कहना है कि भारत केंद्रित ज्ञान में भारतीय संविधान और वैश्विक रुझानों के बारे में जागरूकता भी होनी चाहिए। अगली पीढ़ी के विकास के लिए ये बहुत ज़रूरी है।

क्या-क्या पढ़ाया जाएगा?
नए पाठ्यक्रम में त्रिकोणमिति के साथ भास्कराचार्य के योगदान, प्राचीन भारत में सुश्रुत और चरक के चिकित्सा विज्ञान के आविष्कार, योग का महत्व, प्राचीन भारतीय तकनीक, और वैदिक ज्ञान को भी शामिल किया जाएगा।

क्या ये सही है?
कुछ शिक्षक मानते हैं कि इन चीज़ों को एक्स्ट्रा पढ़ाई के तौर पर रखना ठीक है, लेकिन इन्हें नियमित पढ़ाई में शामिल करने पर ज़ोर नहीं देना चाहिए।

किस बात पर हो रहा है विरोध?
कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि ये मसौदा सिर्फ उच्च जाति के हिंदुत्व को भारतीय के रूप में पेश करता है, जिससे शिक्षा का ‘भगवाकरण’ और ‘ब्राह्मणीकरण’ हो रहा है।

क्या मराठी स्कूल भी हैं नाखुश? 
मराठी स्कूल मैनेजमेंट्स एसोसिएशन के सुशील शेजुले का कहना है कि भारत की समृद्ध प्राचीन संस्कृति का इस्तेमाल धार्मिक शिक्षा को स्कूलों में थोपने के बहाने के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलाई है।

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