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आसमान से नजर आई जमीन की त्रासदी: वायनाड भूस्खलन की हैरान करने वाली सच्चाई, ISRO के कैमरे ने कैद की विनाश की दास्तान

आसमान से नजर आई जमीन की त्रासदी: वायनाड भूस्खलन की हैरान करने वाली सच्चाई, ISRO के कैमरे ने कैद की विनाश की दास्तान

केरल के वायनाड में हुए भयानक भूस्खलन ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस दर्दनाक हादसे में 150 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए। यह घटना इतनी भयावह थी कि इसने सभी को हैरान कर दिया। अब इस पूरी घटना की एक नई तस्वीर सामने आई है, जो भारतीय सैटेलाइट ने खींची है। इस हाई रिज़ॉल्यूशन की तस्वीर में साफ दिख रहा है कि वायनाड भूस्खलन ने कितनी बड़ी तबाही मचाई है।

सैटेलाइट से मिली जानकारी के मुताबिक, करीब 86,000 स्क्वेयर मीटर जमीन खिसक गई है। यह एरिया राष्ट्रपति भवन से पांच गुना बड़ा है। इतना ही नहीं, जो मलबा गिरा वो इरुवैफुझा नदी के किनारे 8 किलोमीटर तक बह गया। इस वक्त NDRF की टीम वहां बचाव काम में जुटी हुई है।

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इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पहले ही इस इलाके में भूस्खलन का खतरा बता दिया था। ISRO ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि इस जगह पर पहले भी भूस्खलन हुआ है। ISRO के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद ने इस इलाके की तस्वीरें लेने के लिए दो खास सैटेलाइट का इस्तेमाल किया – कार्टोसैट-3 ऑप्टिकल सैटेलाइट और RISAT सैटेलाइट। ये दोनों सैटेलाइट बादलों के पार भी देख सकते हैं।

ISRO ने बताया कि भूस्खलन समुद्र तल से 1550 मीटर की ऊंचाई पर शुरू हुआ था। ISRO ने 2023 में ‘लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया’ नाम की एक रिपोर्ट भी जारी की थी। इस रिपोर्ट में वायनाड को भूस्खलन के लिए खतरनाक इलाका बताया गया था। इस रिपोर्ट में पिछले 20 सालों में हुए 80,000 भूस्खलन की जानकारी दी गई थी। इसमें केरल के पुथुमाला, वायनाड जिले को खास तौर पर शामिल किया गया था।

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ISRO के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ ने कहा था कि यह रिपोर्ट भारत में भूस्खलन की पूरी तस्वीर पेश करती है और बताती है कि कौन से इलाके खतरे में हैं। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि यह रिपोर्ट आपदा से निपटने वाली टीमों के लिए बहुत मददगार साबित होगी।

31 जुलाई, 2024 को ली गई तस्वीर में साफ दिख रहा है कि भूस्खलन से गिरा मलबा चारों तरफ फैल गया है। यह तस्वीर RISAT SAR नाम के हाई रिज़ॉल्यूशन कैमरे से ली गई है। इस तस्वीर से पता चलता है कि मलबा करीब 8 किलोमीटर तक बहा है। जहां से भूस्खलन शुरू हुआ, वहां पहले भी ऐसी घटना हो चुकी थी।

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भूस्खलन ने इरुवानीफुजा नदी का रास्ता बदल दिया है। नदी अब पहले से ज्यादा चौड़ी हो गई है और उसके किनारे टूट गए हैं। इस वजह से नदी के पास बने घर और दूसरी चीजें बर्बाद हो गई हैं। ISRO ने इस इलाके की 3D तस्वीर भी बनाई है। इस तस्वीर से पता चलता है कि पहाड़ का बड़ा हिस्सा इस हादसे की चपेट में आ गया है।

यह घटना एक बार फिर बताती है कि प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें कितना सतर्क रहने की जरूरत है। ISRO जैसी संस्थाओं की चेतावनियों को गंभीरता से लेना चाहिए। साथ ही, ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों को भी सावधान रहना चाहिए और किसी भी तरह के खतरे के संकेत दिखते ही सुरक्षित जगह पर चले जाना चाहिए।

यह घटना यह भी दिखाती है कि आधुनिक तकनीक कैसे आपदा प्रबंधन में मदद कर सकती है। ISRO के सैटेलाइट की मदद से न सिर्फ खतरे की पहचान की जा सकती है, बल्कि आपदा के बाद नुकसान का सही अंदाजा लगाने में भी मदद मिलती है। इससे बचाव और राहत कार्यों को बेहतर तरीके से अंजाम दिया जा सकता है।

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