Kumbh Mela Stampede (कुंभ भगदड़) – भारत में कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा जनसमूह है। लाखों श्रद्धालु इस पवित्र मेले में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने आते हैं। लेकिन इतने बड़े आयोजन में भीड़ बेकाबू हो जाए, तो भगदड़ जैसी घटनाएं हो सकती हैं। कुंभ के इतिहास में कई बार ऐसे हादसे हुए हैं, जिनमें सैकड़ों लोगों की जान गई।
इस तरह की सबसे भयानक घटनाओं में से एक 1954 में हुई, जब प्रयागराज कुंभ में हुई भगदड़ के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया गया था। आइए जानते हैं, इस घटना के अलावा कुंभ मेले में कब-कब भीषण भगदड़ मची और कितने लोग इसकी चपेट में आए।
2025 का प्रयागराज महाकुंभ हादसा
हाल ही में प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में बड़ा हादसा हो गया। मौनी अमावस्या पर संगम स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु इकट्ठा हुए थे। रात करीब 1 बजे संगम नोज के पास भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई। खबरों के मुताबिक, इस हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई, हालांकि प्रशासन की तरफ से अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
2013 का प्रयागराज कुंभ: रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़
2013 में हुए प्रयागराज कुंभ में भी मौनी अमावस्या के दिन बड़ा हादसा हुआ था। 10 फरवरी को प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर इतनी भीड़ हो गई कि भगदड़ मच गई। इस घटना में 36 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों श्रद्धालु घायल हुए थे।
2010 का हरिद्वार कुंभ: मेला परिसर में मची भगदड़
2010 में हरिद्वार कुंभ के दौरान 14 अप्रैल को मेला परिसर में भगदड़ मच गई थी। बड़ी संख्या में श्रद्धालु एक साथ घाटों की तरफ बढ़ रहे थे, जिससे स्थिति बेकाबू हो गई। इस हादसे में 7 लोगों की जान चली गई थी।
2003 का नासिक कुंभ: 39 श्रद्धालुओं की मौत
2003 में नासिक कुंभ के दौरान 27 अगस्त को भगदड़ मच गई थी। इस दौरान 39 लोगों की मौत हुई थी। नासिक कुंभ का त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गोदावरी नदी पर विशेष महत्व है, और यहां भी भारी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।
1992 का उज्जैन कुंभ: 50 से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत
1992 में उज्जैन में हुए सिंहस्थ कुंभ में भी बड़ा हादसा हुआ था। वहां भी भीड़ बेकाबू हो गई थी, और भगदड़ में 50 से ज्यादा श्रद्धालुओं की जान चली गई थी।
1954 का प्रयागराज कुंभ: जब नेहरू पर लगा भगदड़ का आरोप
आजादी के बाद 1954 में पहली बार प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन हुआ। तीन फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन संगम पर स्नान के लिए लाखों लोग पहुंचे। अचानक भगदड़ मच गई और स्थिति इतनी बिगड़ गई कि करीब 800 लोगों की मौत हो गई।
कहा जाता है कि इस हादसे से एक दिन पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कुंभ मेले का दौरा करने पहुंचे थे। उन्होंने प्रशासन से तैयारियों का जायजा लिया था, लेकिन भीड़ को नियंत्रित करने की पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। हादसे के बाद विपक्षी दलों ने इसका आरोप नेहरू पर मढ़ दिया और कहा कि उनकी प्रशासनिक लापरवाही के कारण इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मौत हुई।
हालांकि, सरकार की ओर से इसे सिर्फ अव्यवस्था और भीड़ नियंत्रण की नाकामी बताया गया। लेकिन यह घटना कुंभ के इतिहास की सबसे भयानक त्रासदियों में गिनी जाती है।
Kumbh Mela Stampede: कुंभ मेले में भगदड़ क्यों मचती है?
कुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की सबसे बड़ी वजह भीड़ नियंत्रण में लापरवाही होती है। लोग संगम या पवित्र स्नान घाटों की ओर तेजी से बढ़ते हैं, और जब एक साथ लाखों श्रद्धालु आगे बढ़ने लगते हैं, तो हालात बेकाबू हो जाते हैं।
- कई बार लोग जल्दी स्नान करने की होड़ में धक्का-मुक्की करने लगते हैं।
- सुरक्षा और प्रशासन अगर सही समय पर सही फैसले नहीं लेते, तो भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाता है।
- रेलवे स्टेशनों और बस स्टॉप पर भी भारी भीड़ के कारण भगदड़ की घटनाएं हो सकती हैं।
कैसे रोकी जा सकती हैं ऐसी घटनाएं?
भगदड़ से बचने के लिए सरकार और प्रशासन को कई बड़े कदम उठाने होते हैं।
- श्रद्धालुओं को सुनियोजित तरीके से प्रवेश और निकास के रास्ते दिए जाने चाहिए।
- सुरक्षा बलों की मौजूदगी और सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की जानी चाहिए।
- आपातकालीन स्थिति के लिए विशेष चिकित्सा और बचाव दल तैयार रहना चाहिए।
- रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर भी भीड़ नियंत्रण के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए।
अगर इन चीजों पर सही तरीके से ध्यान दिया जाए, तो कुंभ जैसे पवित्र आयोजनों को और सुरक्षित बनाया जा सकता है।
कुंभ मेला आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा पर्व है, लेकिन हर बार इसकी व्यवस्थाओं में चूक के कारण भगदड़ जैसी घटनाएं हो जाती हैं। 1954 से लेकर 2025 तक, हर कुंभ में कोई न कोई बड़ा हादसा देखने को मिला है।
1954 में प्रयागराज कुंभ के दौरान हुई भगदड़ के लिए विपक्ष ने जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन असली कारण भीड़ नियंत्रण की विफलता थी। इसी तरह, 2013, 2010, 2003 और 1992 के कुंभ में भी ऐसी घटनाएं हुईं।
आवश्यकता इस बात की है कि आने वाले कुंभ मेलों में सुरक्षा को और सख्त किया जाए, ताकि श्रद्धालु बिना किसी डर के अपनी आस्था को पूरा कर सकें।
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