भारतीय महिलाएं: भारत में महिला शिक्षा के स्तर में अभूतपूर्व बढ़त देखी गई है, जो देश के लिए एक बड़ी सफलता है। इसके विपरीत, कामकाजी महिलाओं (workforce) की संख्या में समय के साथ गिरावट आई है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में रोजगार योग्यता लिंग अंतर 50.9% है, जिसमें श्रम बल में पुरुषों की 70.1% तुलना में केवल 19.2% महिलाएं हैं। 2021 के विश्व बैंक के आंकड़ों से एक और रिपोर्ट से पता चलता है कि पांच भारतीय महिलाओं में से एक से भी कम औपचारिक रूप से कार्यरत हैं।
सवाल यह है कि इतनी कम श्रम भागीदारी के बावजूद लोग अपनी बेटियों को क्यों शिक्षित करते हैं? इस विषय पर विशेषज्ञों के कई विचार सामने आ रहे हैं:
- शादी की बेहतर संभावनाएं: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी की प्रोफेसर राखी चतुर्वेदी का मानना है कि बढ़ती महिला शिक्षा का कारण अक्सर नौकरी की संभावना नहीं, बल्कि शादी की उच्च संभावना होती है। उनका कहना है कि, “आजकल, अधिकांश परिवार उच्च शिक्षित बहुएं चाहते हैं, ताकि उनकी संतान भी अधिक शिक्षित हो।”
- Role Models और Mentors की कमी: P&G India में ब्यूटी एंड हेयर केयर की श्रेणी प्रमुख दीक्षा कक्कड़ का मानना है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए mentorship कार्यक्रमों की आवश्यकता है। स्टेम (STEM) छोड़ने वाली महिलाओं पर किए गए एक सर्वेक्षण में, उनका कहना है कि 81% महिलाओं ने रोल मॉडल और मेंटर्स की कमी को मुख्य कारण माना।
- सामाजिक मानसिकता: मुंबई में महिलाओं और बच्चों के लिए एक एनजीओ अक्षरा सेंटर की समाजशास्त्री तस्नीम खान का मानना है कि बदलती आर्थिक स्थिति के साथ, महिलाएं अक्सर काम छोड़ देती हैं और जब परिवार आर्थिक रूप से स्थिर हो जाता है, तो वे उम्मीद करते हैं कि महिला श्रमबल से बाहर निकल जाएगी।
इसके अलावा, भारत में एक आम धारणा है कि ‘महिलाओं को घर के बाहर काम नहीं करना चाहिए’। हालांकि बदलते आर्थिक हालत के साथ, अधिक से अधिक महिलाएं अब परिवार का खर्च चलाने में सहयोग करने के लिए काम करने पर भी विचार कर रही हैं। इस तरह महिलाओं के रोजगार को लेकर सामाजिक मानसिकता में बदलाव भी धीरे-धीरे नजर आ रहा है।