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Right to Alimony: साथ रहने के आदेश का पालन न करने पर भी पति से गुजारा भत्ता पा सकती है पत्नी, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Right to Alimony: साथ रहने के आदेश का पालन न करने पर भी पति से गुजारा भत्ता पा सकती है पत्नी, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Right to Alimony: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी, वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन न करने के बावजूद, अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार हो सकती है। यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत लेकर आया है, जिनके पास पति के साथ रहने से इनकार करने के वैध और पर्याप्त कारण हैं।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

“गुजारा भत्ता का हक” (Right to Alimony) जैसे मामलों में कानून और परिस्थितियों के बीच संतुलन बनाना हमेशा एक चुनौतीपूर्ण विषय रहा है। सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने झारखंड के एक दंपती के मामले में इस कानूनी विवाद का निपटारा किया। पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए पारिवारिक अदालत से आदेश प्राप्त किया था, लेकिन पत्नी ने इस आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 2014 में विवाह करने वाले एक दंपती का है, जो 2015 में अलग हो गए। पति ने पारिवारिक अदालत का रुख कर यह दावा किया कि पत्नी ससुराल छोड़कर चली गई और उसे बार-बार बुलाने के बावजूद वापस नहीं लौटी। इसके विपरीत, पत्नी ने आरोप लगाया कि पति उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करता था और पांच लाख रुपये की मांग करता था।

Right to Alimony: कोर्ट का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन न करने पर भी पत्नी को भरण-पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, अगर उसके पास इसके पीछे वैध कारण हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में कोई सख्त नियम लागू नहीं हो सकता और फैसला परिस्थितियों और साक्ष्यों के आधार पर लिया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय का निर्णय

इस मामले में पहले झारखंड उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि पत्नी, जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन नहीं करती, वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को चुनौती दी और स्पष्ट किया कि केवल आदेश का पालन न करने से भरण-पोषण के अधिकार को नकारा नहीं जा सकता।

महिलाओं के अधिकारों की रक्षा

यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि हर मामले की परिस्थितियां अलग होती हैं और यह जरूरी है कि न्याय प्रणाली महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करे।

“सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पति से गुजारा भत्ता पा सकती है पत्नी” (Supreme Court Decision: Wife Entitled to Alimony) इस बात का सबूत है कि कानून परिस्थितियों के आधार पर विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए तैयार है। यह महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत है, खासकर उन मामलों में जहां वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही होती हैं।


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