महाराष्ट्र

Marathi our mother tongue: अजित पवार का बयान- मराठी पहले, हिंदी तीसरी भाषा के रूप में

Marathi our mother tongue: अजित पवार का बयान- मराठी पहले, हिंदी तीसरी भाषा के रूप में

Marathi our mother tongue: महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के फैसले का बचाव किया। यह निर्णय मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए लागू किया गया है। इस कदम ने न केवल शिक्षा क्षेत्र में चर्चा को जन्म दिया, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर भी बहस छेड़ दी है। लेकिन यह निर्णय आखिर क्यों लिया गया, और इसका महाराष्ट्र की नई पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आइए, इस विषय को गहराई से समझते हैं।

मराठी की प्राथमिकता और हिंदी का महत्व

महाराष्ट्र में मराठी भाषा केवल एक भाषा नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और पहचान का प्रतीक है। अजित पवार ने स्पष्ट किया कि मराठी हमारी मातृभाषा (Marathi our mother tongue) है और इसे हमेशा राज्य में पहली प्राथमिकता दी जाएगी। पिंपरी चिंचवड में चापेकर बंधुओं के राष्ट्रीय स्मारक के उद्घाटन के दौरान उन्होंने कहा, “मराठी हमारी मातृभाषा है और रहेगी। इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।” लेकिन इसके साथ ही उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की उपयोगिता को भी रेखांकित किया।

हिंदी, भारत के कई राज्यों में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। यह न केवल संचार का माध्यम है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने वाली कड़ी भी है। हिंदी तीसरी भाषा (Hindi third language) के रूप में स्कूलों में शामिल करने का निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत लिया गया है। इस नीति का लक्ष्य छात्रों को बहुभाषी शिक्षा प्रदान करना है, ताकि वे वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर संचार कर सकें। अजित पवार ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदी का विरोध करने वाले लोग बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “कुछ लोग हिंदी को लेकर विवाद पैदा कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास और कोई मुद्दा नहीं है।”

हिंदी को लेकर उठा विवाद

हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के फैसले का कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस कदम को “हिंदीकरण” की कोशिश करार दिया और कहा कि उनकी पार्टी इसे महाराष्ट्र में सफल नहीं होने देगी। कांग्रेस ने भी इस निर्णय को हिंदी थोपने की नीति बताया। इन विरोधों के बीच अजित पवार ने स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा कहने को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह कई राज्यों में बोली जाती है और इसका महत्व निर्विवाद है।

इस विवाद के बीच यह समझना जरूरी है कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का मतलब मराठी की जगह लेना नहीं है। बल्कि, यह एक पूरक भाषा के रूप में है, जो छात्रों को व्यापक अवसर प्रदान करेगी। उदाहरण के लिए, एक मराठी माध्यम का छात्र जो हिंदी और अंग्रेजी भी सीखता है, वह भविष्य में नौकरी या उच्च शिक्षा के लिए अन्य राज्यों में आसानी से जा सकता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और नया पाठ्यक्रम

हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का हिस्सा है। इस नीति के तहत स्कूलों में तीन-भाषा फॉर्मूला अपनाया जा रहा है, जिसमें मराठी, हिंदी और अंग्रेजी शामिल हैं। महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा विभाग ने इस नए पाठ्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की योजना बनाई है। इसका उद्देश्य छात्रों को ऐसी शिक्षा देना है, जो उन्हें स्थानीय संस्कृति से जोड़े रखे और साथ ही राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए।

इस नीति के तहत, कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को अब दो के बजाय तीन भाषाएं पढ़नी होंगी। यह बदलाव इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह छात्रों को कम उम्र से ही बहुभाषी बनने का अवसर देता है। अजित पवार ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मराठी को और मजबूत करने के लिए मुंबई में मराठी भाषा भवन स्थापित करने की योजना है।

मराठी को मिला सम्मान

मराठी भाषा को हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। अजित पवार ने इस निर्णय का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार को दिया। उन्होंने कहा, “यह फैसला दिल्ली में वर्षों से लंबित था। एनडीए सरकार ने हिम्मत दिखाई और मराठी को यह सम्मान दिया।” यह दर्जा मराठी भाषा के साहित्य, इतिहास और सांस्कृतिक महत्व को और उजागर करता है।

मराठी भाषा भवन की स्थापना भी इसी दिशा में एक कदम है। यह भवन न केवल मराठी भाषा को बढ़ावा देगा, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी विरासत से जोड़े रखेगा। अजित पवार ने इस बात पर जोर दिया कि मराठी को हर हाल में संरक्षित और समृद्ध किया जाएगा।

भविष्य की संभावनाएं

हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का निर्णय महाराष्ट्र के छात्रों के लिए नई संभावनाएं खोल सकता है। यह उन्हें न केवल अपने राज्य में, बल्कि पूरे भारत में बेहतर संचार और अवसरों के लिए तैयार करेगा। उदाहरण के लिए, एक छात्र जो मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में पारंगत है, वह कॉर्पोरेट क्षेत्र, मीडिया, या सरकारी नौकरियों में आसानी से अपनी जगह बना सकता है।

इसके अलावा, बहुभाषी शिक्षा का एक और लाभ यह है कि यह छात्रों में सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देता है। हिंदी सीखने से महाराष्ट्र के छात्र अन्य राज्यों की संस्कृति और परंपराओं को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। यह एकता और सहयोग की भावना को मजबूत करेगा।

एक नई शुरुआत

महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करना एक नई शुरुआत है। यह कदम शिक्षा को और समावेशी और व्यापक बनाने की दिशा में उठाया गया है। अजित पवार ने इस बात पर बल दिया कि मराठी, हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मराठी की प्राथमिकता कभी कम नहीं होगी। यह संदेश न केवल मराठी भाषा के प्रति सम्मान को दर्शाता है, बल्कि एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की ओर इशारा करता है, जो छात्रों को भविष्य के लिए तैयार करे।

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