महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत एक बड़ा फैसला लिया है। इस नीति के अनुसार, कक्षा पहली से पांचवीं तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय ने जहां एक ओर शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशा देने का प्रयास किया है, वहीं दूसरी ओर भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता को लेकर एक गर्मागर्म बहस को भी जन्म दे दिया है। महाराष्ट्र में भाषा न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि ये संस्कृति और पहचान का प्रतीक भी है।
संजय राउत का विरोध और मराठी भाषा का सम्मान
शिवसेना-यूबीटी के सांसद संजय राउत ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उनका मानना है कि महाराष्ट्र की राजभाषा मराठी है और इसे हर क्षेत्र में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। राउत ने कहा कि हिंदी सिखाने की जरूरत महाराष्ट्र में नहीं है, क्योंकि यहां की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान मराठी से जुड़ी है। उन्होंने सरकार पर भाषा की राजनीति करने का आरोप लगाया और मांग की कि मराठी को नौकरियों, उद्योगों और व्यापार में सम्मानजनक स्थान मिले। राउत का ये बयान महाराष्ट्र की जनता के बीच मराठी अस्मिता को लेकर गहरे भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और महाराष्ट्र का योगदान
राउत ने अपने तर्क को और मजबूत करते हुए कहा कि मुंबई में हिंदी फिल्म उद्योग का केंद्र है। महाराष्ट्र के लोग हिंदी गीत गाते हैं और इस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं। ऐसे में हिंदी को अनिवार्य करने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि हिंदी को उन राज्यों में बढ़ावा देना चाहिए जहां इसकी वास्तव में जरूरत है, जैसे तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश या नॉर्थ-ईस्ट। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को प्राथमिकता देना समय की मांग है।
मराठी की अनदेखी का आरोप
संजय राउत ने बीजेपी पर मराठी भाषा की उपेक्षा करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया जिसमें बीजेपी के एक नेता ने घाटकोपर की भाषा को गुजराती बताया था। राउत ने पूछा कि इस तरह के बयानों पर क्या कार्रवाई की गई। उनका कहना है कि मराठी को केवल कागजों पर नहीं, बल्कि वास्तव में हर स्कूल में अनिवार्य करना चाहिए। ये मांग महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।
हिंदी को जबरदस्ती थोपने का विरोध
राउत ने हिंदी के प्रति देश में मौजूद प्रेम को स्वीकार किया, लेकिन इसे पाठ्यक्रम में जबरदस्ती लागू करने का विरोध किया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को अंग्रेजी नहीं आती, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हर किसी को हिंदी पढ़ाई जाए। उनका ये बयान हिंदी को अनिवार्य करने के पीछे की मंशा पर सवाल उठाता है।
राज ठाकरे पर तीखा हमला
इस विवाद में संजय राउत ने मनसे प्रमुख राज ठाकरे पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे बाला साहेब ठाकरे की भाषा की नकल कर रहे हैं, लेकिन उनकी राजनीति को देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे कमजोर कर रहे हैं। राउत का ये बयान राजनीतिक और भाषाई विवाद को और गहरा करता है, जो महाराष्ट्र की सियासत में एक नया मोड़ ला सकता है।
क्षेत्रीय भाषा और हिंदी का संतुलन
राउत ने ये भी कहा कि विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में लोग हिंदी बोलते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पूरे महाराष्ट्र में हिंदी को थोपा जाए। उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि महाराष्ट्र की हिंदी भी किसी से कम नहीं है और जरूरत पड़ने पर वे यूपी-बिहार वालों को भी हिंदी सिखा सकते हैं। ये बयान न केवल उनके आत्मविश्वास को दर्शाता है, बल्कि क्षेत्रीय गौरव को भी उजागर करता है।
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