Hindi Mandate Scrapped: महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने हाल ही में एक बड़ा फैसला वापस लेते हुए कक्षा 1 से हिंदी भाषा को अनिवार्य करने की योजना रद्द कर दी। यह निर्णय न केवल शैक्षिक नीतियों से जुड़ा है, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक और सामाजिक कारण भी हैं। इस कदम ने पूरे राज्य में चर्चा का माहौल बना दिया है, क्योंकि यह मराठी अस्मिता और शिक्षा नीति के बीच एक नाजुक संतुलन को दर्शाता है।
कुछ समय पहले, सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करने की घोषणा की थी, जिसमें हिंदी को अनिवार्य करना शामिल था। इस फैसले का उद्देश्य बच्चों को हिंदी (Hindi Language), मराठी, और अंग्रेजी जैसी भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना था। लेकिन जैसे ही यह खबर फैली, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे मराठी भाषा और संस्कृति पर हमले के रूप में देखा। खासकर, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। दोनों दलों ने 5 जुलाई को मुंबई में एक विशाल महामोर्चा का आह्वान किया था, जिसमें मराठी अस्मिता (Marathi Identity) को बचाने की बात कही गई।
विपक्ष का यह विरोध कोई नया नहीं था। महाराष्ट्र में मराठी और हिंदी के बीच का तनाव पहले भी देखा जा चुका है। बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे जैसे नेताओं ने लंबे समय तक मराठी भाषा को बढ़ावा देने की वकालत की है। हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को कई लोगों ने “मराठी पर हिंदी थोपने” की कोशिश के रूप में देखा। इस मुद्दे ने न केवल राजनीतिक हलकों में, बल्कि आम लोगों, शिक्षाविदों और अभिभावकों के बीच भी नाराजगी पैदा की। सोशल मीडिया पर भी इस फैसले की आलोचना होने लगी, जहां लोगों ने तर्क दिया कि छोटे बच्चों पर एक अतिरिक्त भाषा का बोझ डालना उनकी शिक्षा के लिए ठीक नहीं है।
इसके अलावा, महाराष्ट्र में जल्द ही होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों ने भी सरकार पर दबाव बढ़ाया। विपक्षी दल इस मुद्दे को जनता के बीच भुनाने की तैयारी में थे। अगर यह मुद्दा और बड़ा हो जाता, तो यह एक पूर्ण आंदोलन का रूप ले सकता था। शायद यही वजह थी कि सरकार ने समय रहते अपने कदम पीछे खींच लिए। रविवार को हुई कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि 16 अप्रैल और 17 जून 2025 के सरकारी प्रस्तावों को रद्द कर दिया गया है।
अब सरकार ने इस मामले को और गहराई से समझने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला किया है। इस समिति की अध्यक्षता प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे। समिति का काम त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करने के तरीकों पर विचार करना होगा। यह समिति तय करेगी कि हिंदी भाषा (Hindi Language) और अन्य भाषाओं को किन कक्षाओं में और कैसे पढ़ाया जाए। साथ ही, छात्रों को भाषा चुनने के लिए कौन-कौन से विकल्प दिए जा सकते हैं। इस कदम से सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह सभी पक्षों की राय को ध्यान में रखना चाहती है।
हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा और अस्मिता के मुद्दे को उभार दिया है। यह फैसला न केवल शिक्षा नीति से जुड़ा है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे राजनीतिक दबाव और सामाजिक भावनाएं किसी नीति को प्रभावित कर सकती हैं। मराठी अस्मिता (Marathi Identity) का सवाल महाराष्ट्र में हमेशा से संवेदनशील रहा है, और इस बार भी यह मुद्दा चर्चा का केंद बिंदु बन गया।
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