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Chhagan Bhujbal Political Struggle: ताकतवर ओबीसी नेता छगन भुजबल, अजित पवार ने क्यों लिया किनारे लगाने का फैसला

Chhagan Bhujbal Political Struggle: ताकतवर ओबीसी नेता छगन भुजबल, अजित पवार ने क्यों लिया किनारे लगाने का फैसला

Chhagan Bhujbal Political Struggle: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर हलचल में है। एनसीपी (अजित पवार गुट) के प्रमुख नेता छगन भुजबल की नाराज़गी और उन्हें मंत्रिमंडल में जगह न मिलने का मुद्दा सुर्खियों में है। एक समय पर अजित पवार के सबसे करीबी माने जाने वाले छगन भुजबल अब पार्टी में अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं। यह सवाल उठ रहा है कि आखिर अजित पवार ने छगन भुजबल को किनारे लगाने का फैसला क्यों लिया (Why Ajit Pawar sidelined Chhagan Bhujbal)?

छगन भुजबल: एक ताकतवर ओबीसी नेता का सफर

छगन भुजबल महाराष्ट्र की राजनीति के जाने-माने चेहरे हैं। 80 के दशक से वह राज्य के विभिन्न अहम पदों पर रहे हैं और ओबीसी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। उन्होंने शिवसेना से राजनीति शुरू की और बाद में शरद पवार के नेतृत्व में एनसीपी का हिस्सा बने।

छगन भुजबल का ओबीसी राजनीति में कद इतना बड़ा है कि उन्हें नजरअंदाज करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं। फिर भी, मौजूदा कैबिनेट विस्तार में उन्हें बाहर रखकर अजित पवार ने बड़ा संदेश दिया है।

मराठा आंदोलन बना बड़ी वजह

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छगन भुजबल को साइडलाइन करने का पहला कारण मराठा आंदोलन है। जब मनोज जरांगे मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे थे, तब भुजबल ने उनके खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।

जहां अजित पवार और एनसीपी का कोई भी नेता आंदोलन के खिलाफ कुछ भी बोलने से बच रहा था, वहीं भुजबल ने खुलकर मनोज जरांगे की आलोचना की। इससे न केवल पार्टी को नुकसान हुआ, बल्कि अजित पवार के लिए यह एक राजनीतिक चुनौती भी बन गया।

अजित पवार और छगन भुजबल के बीच असहमति

भुजबल का पार्टी के प्रति स्वतंत्र रुख और समय-समय पर पार्टी लाइन से अलग खड़ा होना भी उनके खिलाफ गया। कई मौकों पर उन्होंने एनसीपी के नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोला, जिससे पार्टी की छवि पर असर पड़ा।

अजित पवार को यह एहसास हुआ कि भुजबल पार्टी में एक विरोधी ताकत के रूप में उभर रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर रखने का फैसला लिया गया।

ओबीसी वोटों की राजनीति और अजित पवार का डर

भुजबल के साइडलाइन होने का एक और कारण ओबीसी वोट बैंक का नुकसान था। विधानसभा चुनावों में ओबीसी वोटों को लेकर एनसीपी (अजित पवार गुट) को आशंका थी। अजित पवार ने भुजबल को मंत्री पद न देकर पार्टी के लिए चुनावी जोखिम को कम करने की कोशिश की।

हालांकि, जब चुनावों में एनसीपी गुट का प्रदर्शन बेहतर रहा, तो अजित पवार को भुजबल को किनारे करने का कॉन्फिडेंस मिला।

छगन भुजबल के पास क्या विकल्प हैं?

अब सवाल यह उठता है कि भुजबल आगे क्या करेंगे?

  1. शरद पवार के पास लौटना: यह भुजबल के लिए सबसे आसान विकल्प हो सकता है। शरद पवार के साथ उनका पुराना जुड़ाव रहा है।
  2. स्वतंत्र पार्टी बनाना: अगर भुजबल अपने समर्थकों को जुटाने में सफल होते हैं, तो वह अपनी स्वतंत्र पार्टी भी बना सकते हैं।
  3. भाजपा में शामिल होना: भाजपा भुजबल जैसे कद्दावर ओबीसी नेता को अपने पाले में खींचने की कोशिश कर सकती है।

भुजबल की नाराज़गी: क्या है अगला कदम?

मंत्रिमंडल में जगह न मिलने के बाद छगन भुजबल ने साफ संकेत दिया है कि वह अपनी अगली रणनीति अपने समर्थकों से चर्चा के बाद तय करेंगे। उनकी नाराज़गी ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दिया है।

अजित पवार के लिए यह देखना चुनौतीपूर्ण होगा कि भुजबल का अगला कदम क्या होता है। फिलहाल, यह साफ है कि भुजबल के साइडलाइन होने से एनसीपी के भीतर एक नया सियासी अध्याय शुरू हो चुका है।


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