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“नाश्ता कर लो, कभी भी गिरफ्तारी…” इमरजेंसी के वे किस्से जो आज भी जेहन में ताजा हैं

इमरजेंसी, आपातकाल, लोकतंत्र

आपातकाल (इमरजेंसी) की पीड़ा और उस समय की घटनाएं आज भी कई लोगों के दिलों में ताजा हैं। सरकार ने आपातकाल की अवधि के दौरान सहन की गई अमानवीय पीड़ा को याद रखने और उसे सम्मानित करने के लिए 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को यह ऐलान करते हुए कहा कि ‘संविधान हत्या दिवस’ से हर भारतीय में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा की भावना को मजबूती मिलेगी। यह दिन हमें कांग्रेस जैसी तानाशाही ताकतों के भयावहताओं को दोहराने से रोकेगा।

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1975 के आपातकाल की यादें कई लोगों के लिए आज भी जीवंत हैं। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लालू प्रसाद यादव तक कई नेताओं ने इस दौरान जेल में समय बिताया था। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया था। लालू यादव ने मीसा कानून के विरोध में अपनी बेटी का नाम मीसा रख दिया था। 25-26 जून 1975 की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक, यानी 21 महीने के लिए, भारत में आपातकाल लागू किया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था, जिसमें चुनाव स्थगित हो गए थे और नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था।

आपातकाल के वक्त बेंगलुरु में थे आडवाणी

लालकृष्ण आडवाणी की जेल डायरी के अनुसार, जब आपातकाल लागू हुआ, तब वे बेंगलुरु में थे। उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य जनसंघ (अब बीजेपी) और कांग्रेस के नेता भी थे। इन नेताओं ने बेंगलुरु में एक बैठक में हिस्सा लिया था। आडवाणी और श्यामनंदन मिश्रा 25 जून 1975 को बेंगलुरु पहुंचे थे और एमएलए हॉस्टल की पहली मंजिल पर एक ही कमरे में रुके थे। किसी को अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह क्या होने वाला है। 26 जून 1975 की सुबह, आडवाणी को जनसंघ कार्यालय से फोन आया कि जयप्रकाश नारायण समेत कई नेता गिरफ्तार हो चुके हैं और जल्द ही पुलिस उन तक भी पहुंच सकती है। आडवाणी और वाजपेयी ने तय किया कि वे अंडरग्राउंड नहीं होंगे, बल्कि पुलिस के आने पर गिरफ्तारी देंगे।

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अटल बिहारी वाजपेयी ने नाश्ता किया और फिर दी गिरफ्तारी

आपातकाल की घोषणा के बाद, 26 जून 1975 को लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों नेताओं को गिरफ्तारी का पहले से अंदेशा था, इसलिए उन्होंने पुलिस के आने का इंतजार करते हुए नाश्ता करने का निर्णय लिया। वे एमएलए हॉस्टल के ग्राउंड फ्लोर की कैंटीन में नाश्ता कर रहे थे जब उन्हें पता चला कि पुलिस बाहर खड़ी है। बाहर आते ही पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। वाजपेयी ने जेल में रहते हुए आपातकाल के विरोध में कविताएं लिखीं और इंदिरा गांधी की कड़ी आलोचना की।

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लालू ने बेटी का नाम इसलिए रखा मीसा

लालू प्रसाद यादव, जो 22 साल की उम्र में जेपी आंदोलन में शामिल हो गए थे, ने भी आपातकाल के दौरान कई विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। इसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और 1977 तक जेल में बंद रखा गया। उन्हें मीसा कानून के तहत जेल में डाला गया, जिसके चलते उन्होंने अपनी बेटी का नाम मीसा रखा। इसके बाद लालू यादव ने लोकसभा चुनाव लड़ा और 29 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के सांसद बने।

मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए थे राजनाथ सिंह

राजनाथ सिंह को भी आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था। यह समय उनके लिए बहुत कठिन साबित हुआ, क्योंकि जब वे जेल में थे, तब उनकी मां की तबीयत बहुत खराब हो गई थी और अंततः उनका निधन हो गया। राजनाथ ने बताया कि उन्हें मां के अंतिम दर्शन के लिए पेरोल नहीं दी गई थी, बावजूद इसके कि उन्होंने काफी गुहार लगाई थी।

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नीतीश की गिरफ्तारी पर पुलिसवालों को मिला था 2750 रुपये का इनाम

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आपातकाल के समय कई विरोध प्रदर्शनों में शामिल थे। उन्हें 9/10 जून, 1976 की रात गिरफ्तार किया गया था और उनकी गिरफ्तारी पर 15 पुलिस पदाधिकारियों को 2750 रुपये का इनाम मिला था। नीतीश कुमार और अन्य नेताओं को पुलिस ने सादे लिबास में गिरफ्तार किया और मीसा कानून के तहत नजरबंद कर दिया।

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1975 का आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला अध्याय है, जो आज भी लोगों की यादों में ताजा है। इसे याद रखना और उससे सबक लेना आज की पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण है।

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