सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब नीति घोटाला मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में चुनाव प्रचार के लिए 1 जून तक अंतरिम जमानत दी है। इस दौरान, सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया (SG) तुषार मेहता ने अरविंद केजरीवाल को दी गई अंतरिम जमानत का विरोध किया।
उन्होंने अदालत से कहा कि ऐसा आदेश एक गलत मिसाल कायम कर सकता है। उन्होंने अपनी दलील में कट्टरपंथी अलगाववादी अमृतपाल सिंह का जिक्र किया, जो चुनाव लड़ने के लिए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से जमानत मांग रहा है। SG मेहता ने अदालत को यह भी बताया कि अमृतपाल सिंह ने अब चुनाव लड़ने के लिए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से जमानत मांगी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन 21 दिनों की जमानत के दौरान अरविंद केजरीवाल के सामने कई शर्तें भी रखी हैं। अदालत ने जमानत के दौरान केजरीवाल को 2 जून को कोर्ट में सरेंडर करने का निर्देश दिया है। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने SG से ऐसे मामलों को आपस में न जोड़ने की बात कही और यह भी कहा कि ऐसे मामले में कोई तय फॉर्मूला नहीं है।
इस घटनाक्रम ने भारतीय न्यायिक प्रणाली में चुनावी प्रचार और जमानत के बीच संबंधों पर एक नई बहस शुरू कर दी है। यह मामला यह दिखाता है कि कैसे राजनीतिक आरोपों और चुनावी प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाना एक जटिल मुद्दा है। अंततः, यह न्यायपालिका पर निर्भर करता है कि वह इस तरह के मामलों में कैसे निर्णय लेती है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।