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Madgyali Sheep Market: महाराष्ट्र के इस गांव में क्यों बिक रही हैं करोड़ों की भेड़ें? जानिए कैसे हो रहे किसान मालामाल

Madgyali Sheep Market: महाराष्ट्र के इस गांव में क्यों बिक रही हैं करोड़ों की भेड़ें? जानिए कैसे हो रहे किसान मालामाल
महाराष्ट्र के सांगली जिले में स्थित आटपाडी गांव में एक अनोखी परंपरा हर साल लोगों को आकर्षित करती है। माडग्याली भेड़ का बाजार (Madgyali Sheep Market) न केवल व्यापार का केंद्र बन गया है, बल्कि यह क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक भी है। यह यात्रा कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलती है।

माडग्याली भेड़ का बाजार (Madgyali Sheep Market) की विशेषता इसकी अद्भुत कीमतें हैं। इस साल एक माडग्याली राम (नर भेड़) की कीमत 51 लाख रुपये तक पहुंच गई, जो इस मेले की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है। यह कीमत किसी साधारण भेड़ के लिए नहीं, बल्कि एक विशेष नस्ल के लिए है, जिसे माडग्याली कहा जाता है।

धार्मिक महत्व और आर्थिक विकास

श्री उत्तरेश्वर मंदिर के आसपास आयोजित यह मेला धार्मिक और व्यावसायिक गतिविधियों का अनूठा संगम है। यहां पशुओं को सजाया जाता है, उनकी विशेषताओं का प्रदर्शन किया जाता है, और फिर उनकी नीलामी होती है। महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पशु यात्रा (Maharashtra’s Biggest Animal Fair) में कर्नाटक, कोल्हापुर, सतारा और सोलापुर से व्यापारी और किसान भाग लेते हैं।

व्यापार का नया आयाम

पिछले कुछ वर्षों में यह मेला एक नए स्तर पर पहुंच गया है। जहां पहले यहां मंडेशी खिलार बैल और गाय-भैंस की खरीद-बिक्री होती थी, वहीं अब माडग्याली भेड़ों का व्यापार प्रमुख आकर्षण बन गया है। तीन दिन के मेमने से लेकर वयस्क भेड़ों तक, हर उम्र के पशुओं की खरीद-बिक्री होती है।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

आटपाडी क्षेत्र, जो अक्सर सूखे से प्रभावित रहता है, के लिए यह मेला वरदान साबित हुआ है। स्थानीय किसानों के अनुसार, मेले के दौरान उनके पशुओं की कीमत सामान्य बाजार मूल्य से पांच गुना तक अधिक हो जाती है। मंडी समिति के उपाध्यक्ष राहुल गायकवाड़ बताते हैं कि यहां 3-4 लाख से लेकर 51 लाख रुपये तक के सौदे होते हैं।

सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण

मेले में पशुओं को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। रंग-बिरंगी पेंटिंग, आकर्षक सजावट और पारंपरिक संगीत के साथ पशुओं को मेले में लाया जाता है। यह परंपरा न केवल व्यापार को बढ़ावा देती है, बल्कि स्थानीय कला और संस्कृति को भी जीवंत रखती है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ

यह मेला ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यहां न केवल पशु व्यापार होता है, बल्कि स्थानीय व्यवसायों को भी बढ़ावा मिलता है। खान-पान से लेकर हस्तशिल्प तक, मेले में विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियां देखने को मिलती हैं।

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