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Maharashtra CM Suspense: चैन से गांव गए एकनाथ शिंदे ने बीजेपी को किया बेचैन, क्या होगी अगली चाल?

Maharashtra CM Suspense: चैन से गांव गए एकनाथ शिंदे ने बीजेपी को किया बेचैन, क्या होगी अगली चाल?
महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों बड़ा सस्पेंस देखने को मिल रहा है। महायुति गठबंधन (BJP, शिंदे गुट, और NCP का गुट) के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान चरम पर है। मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की भूमिका और भविष्य पर गहन चर्चा हो रही है। “महाराष्ट्र सीएम सस्पेंस” (Maharashtra CM Suspense) ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है।

एकनाथ शिंदे के गांव जाने की खबर ने महायुति में बेचैनी बढ़ा दी है। उनकी नाराजगी, मुख्यमंत्री पद से हटने की अटकलें और बीजेपी की रणनीति ने इस सस्पेंस को और गहरा कर दिया है।


एकनाथ शिंदे की नाराजगी: गांव जाने की वजह

एकनाथ शिंदे ने गुरुवार को मुंबई छोड़कर अपने गांव जाने का फैसला किया। इस खबर ने सियासी हलकों में चर्चा को हवा दी। बीजेपी ने कथित तौर पर शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, शिंदे इससे सहमत नहीं दिख रहे।

“महाराष्ट्र सीएम सस्पेंस” (Maharashtra CM Suspense) की जड़ यह है कि शिंदे को लगता है कि मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद उपमुख्यमंत्री का रोल उनकी छवि को कमजोर करेगा। यह कदम उनके समर्थकों और मराठा समुदाय के बीच उनकी साख को भी प्रभावित कर सकता है।

सूत्रों का कहना है कि शिंदे ने अपनी पार्टी से सुझाव दिया है कि किसी और को यह पद दिया जाए। उन्होंने यहां तक कहा कि वे सरकार से पूरी तरह बाहर रहने पर विचार कर सकते हैं।


श्रीकांत शिंदे के लिए डिप्टी सीएम पद की मांग

एकनाथ शिंदे ने कथित तौर पर अपने बेटे श्रीकांत शिंदे के लिए उपमुख्यमंत्री पद मांगा है। लेकिन बीजेपी ने इस मांग पर सहमति जताने से इनकार कर दिया है।

भाजपा का तर्क है कि श्रीकांत के पास इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए आवश्यक राजनीतिक अनुभव नहीं है। इसके अलावा, उन्हें यह डर है कि ऐसा करने से “भाई-भतीजावाद” (Nepotism) के आरोप लग सकते हैं।

भाजपा को यह भी आशंका है कि श्रीकांत शिंदे को डिप्टी सीएम बनाना शिवसेना (शिंदे गुट) के अन्य वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर सकता है। इससे आंतरिक कलह बढ़ने का खतरा है।


बीजेपी की रणनीति और शिंदे की अहमियत

एकनाथ शिंदे पिछले एक साल में मराठा समुदाय के एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे हैं। उनके मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल जैसे नेताओं के साथ जुड़ाव ने उनकी स्थिति को और मजबूत किया है।

भाजपा के लिए शिंदे न केवल मराठा समुदाय में लोकप्रियता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि विपक्ष के हमलों का सामना करने के लिए भी। इसीलिए भाजपा शिंदे को पूरी तरह अलग करने के मूड में नहीं है।

लेकिन अगर शिंदे नाराज होकर अलग हो जाते हैं, तो यह बीजेपी की रणनीति के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।


महायुति में अंदरूनी खींचतान और शिंदे की अगली चाल

महायुति में एकनाथ शिंदे की भूमिका पर सवाल उठने से यह साफ हो गया है कि गठबंधन के भीतर आपसी खींचतान तेज हो गई है।

बीजेपी की यह कोशिश है कि शिंदे सरकार में बने रहें, ताकि मराठा आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उनका साथ मिल सके। लेकिन शिंदे खुद को इस स्थिति में पाते हैं, जहां उन्हें या तो अपने समर्थकों की उम्मीदों पर खरा उतरना है या गठबंधन में रहकर अपनी राजनीतिक छवि को कमजोर करने का जोखिम उठाना है।


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