Nuclear Ban: 1998 में पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण (Pokhran Nuclear Tests) के बाद अमेरिका ने भारत की कई परमाणु ऊर्जा संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये प्रतिबंध भारत की उभरती ऊर्जा जरूरतों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एक बड़ी रुकावट थी, लेकिन अब, 2025 में, अमेरिकी सरकार इन प्रतिबंधों को हटाने के अंतिम चरण में है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर भारत पर ये प्रतिबंध लगा क्यों था? और अगर अब इस प्रतिबंध को हटा लिया जाता है तो इसका भारत और अमेरिका पर क्या असर होगा?
भारत पर अमेरिका ने क्यों लगाया था प्रतिबंध? (Background of the Nuclear Ban)
11 और 13 मई 1998 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में “ऑपरेशन शक्ति” के तहत परमाणु परीक्षण किया था। इन परीक्षणों ने भारत को वैश्विक परमाणु मानचित्र पर मजबूती से खड़ा कर दिया, लेकिन इसके बाद कई देशों ने भारत पर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए। अमेरिका ने 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं, जैसे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre) और इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (Indira Gandhi Atomic Research Centre), को अपनी प्रतिबंधित सूची में डाल दिया।
भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग का सफर (Journey of India-US Nuclear Cooperation)
2006 में भारत और अमेरिका ने असैन्य परमाणु सहयोग समझौते (Civil Nuclear Cooperation Agreement) पर हस्ताक्षर किए। ये समझौता दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम था। हालांकि, कड़ी शर्तों और कानूनी बाधाओं के चलते ये सहयोग पूरी तरह से लागू नहीं हो सका।
अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार ने प्रतिबंध हटाने और भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग (India-US Nuclear Cooperation) को नए आयाम देने का इरादा जताया है। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor) जेक सुलिवन ने इस दिशा में चल रही प्रगति की पुष्टि की है।
भारत को क्या लाभ होगा? (Benefits for India)
प्रतिबंध हटने के बाद भारतीय कंपनियों और वैज्ञानिकों को अमेरिकी तकनीक और विशेषज्ञता के साथ काम करने का अवसर मिलेगा। ये भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (Small Modular Reactors) जैसे उन्नत तकनीकों को अपनाने में मदद करेगा।
भारत के पास पहले से ही भारी पानी (Heavy Water) और प्राकृतिक यूरेनियम पर आधारित परमाणु रिएक्टरों की विशेषज्ञता है, लेकिन लाइट वॉटर रिएक्टर (Light Water Reactors) तकनीक में अब भी सुधार की जरूरत है। अमेरिका से इस क्षेत्र में सहयोग से भारत अपने ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने में सक्षम होगा।
अमेरिका को क्या मिलेगा? (What Does the US Gain?)
अमेरिकी कंपनियों को भारत के बड़े परमाणु ऊर्जा बाजार में प्रवेश मिलेगा। ये अमेरिका को तकनीकी निर्यात और आर्थिक लाभ के साथ-साथ भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा, भारत में निवेश से अमेरिकी कंपनियों को लंबी अवधि में बढ़त हासिल होगी।
भविष्य के लिए क्या संभावनाएं हैं? (Future Prospects)
परमाणु प्रतिबंध (Nuclear Ban) हटाने का निर्णय दोनों देशों के लिए एक ऐतिहासिक मौका है। ये कदम न केवल भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग (India-US Nuclear Cooperation) को गति देगा, बल्कि ऊर्जा, अंतरिक्ष, और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में भी साझेदारी को नई ऊंचाई पर ले जाएगा।
इससे दोनों देशों को वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और अपने-अपने क्षेत्रों में तकनीकी विकास को बढ़ावा देने का अवसर मिलेगा।
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