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Premarital Genetic Testing: UAE में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य, जानिए क्यों है ये शादी से पहले जरूरी

Premarital Genetic Testing: UAE में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य, जानिए क्यों है ये शादी से पहले जरूरी

Premarital Genetic Testing in UAE: यूएई सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग (विवाह पूर्व आनुवांशिक परीक्षण) को अनिवार्य कर दिया है। इस नियम को एक अक्टूबर 2024 से लागू किया जाएगा। इस कदम का उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों को सेहतमंद बनाए रखना और आनुवांशिक बीमारियों के खतरे को कम करना है। इस लेख में हम जानेंगे कि प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग क्या होती है, यह क्यों जरूरी है, और किन बीमारियों से बचाव में मददगार है।

यूएई में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग का नियम क्यों आया?

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने शादी से पहले आनुवांशिक जांच को अनिवार्य करके एक सराहनीय पहल की है। इस नियम के तहत लड़का और लड़की दोनों की प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग होगी ताकि उनकी आने वाली संतान को गंभीर आनुवांशिक बीमारियों से बचाया जा सके। यूएई में अबू धाबी के 22 सेंटरों पर इस जांच की सुविधा दी जाएगी, जिसमें लगभग 570 जीन और 840 आनुवांशिक समस्याओं की जांच होगी।

यूएई की सरकार का मानना है कि इस कदम से देश में बढ़ते जेनेटिक डिसऑर्डर के बोझ को कम किया जा सकेगा। कई अन्य देशों जैसे साइप्रस, इटली, ग्रीस, तुर्की, ईरान, जॉर्डन, सऊदी अरब और बहरीन में भी प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग पहले से अनिवार्य है। अब यूएई भी इसी श्रेणी में शामिल हो गया है।

क्या है प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग और क्यों है जरूरी?

प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग (Premarital Genetic Testing) यानी शादी से पहले होने वाली जेनेटिक जांच, एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसमें होने वाले कपल की आनुवांशिक बीमारियों का पता लगाया जाता है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनकी संतान में किसी गंभीर बीमारी का खतरा तो नहीं है। विशेषकर सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों का पता इस जांच से चलता है। इसके अलावा इस टेस्टिंग से भविष्य में बच्चों की हेल्थ प्लानिंग और पारिवारिक स्वास्थ्य की देखभाल करना आसान हो जाता है।

हर इंसान के जीन में उनके माता-पिता से कुछ अनुवांशिक गुण या म्यूटेशन आते हैं, जो उनकी शारीरिक संरचना, रंग, आदतें और स्वभाव को प्रभावित करते हैं। अगर इन जीन में कोई गड़बड़ी होती है, तो वह आने वाली पीढ़ियों में ट्रांसफर हो सकती है। कुछ बीमारियों का इलाज नहीं होता और ऐसी स्थिति में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए समय रहते जानकारी प्राप्त करके परहेज या रोकथाम की जा सकती है।

भारत में क्या है स्थिति?

भारत में अभी तक प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग को अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने आनुवांशिक बीमारियों के लिए जागरूकता फैलाने के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हालांकि, देश में बढ़ते आनुवांशिक बीमारियों और शिशु मृत्यु दर को देखते हुए इसे लागू करने की मांग बढ़ रही है।

डॉक्टरों का कहना है कि भारत जैसे बड़े देश में इस तरह की टेस्टिंग से भविष्य में होने वाली आनुवांशिक समस्याओं का बोझ कम किया जा सकता है। इस प्रकार के परीक्षण से बच्चों की जानलेवा बीमारियों से बचाव हो सकता है और माता-पिता को भी अनावश्यक खर्चों से राहत मिल सकती है।

प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग के फायदे

जेनेटिक टेस्टिंग से कपल्स को अपनी आने वाली संतानों की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पहले से पता चल जाता है, जिससे वे सही निर्णय ले सकते हैं। इसके अलावा कुछ साधारण टेस्ट जैसे कंप्लीट ब्लड काउंट, ब्लड ग्रुप और Hb वेरिएंट से भी आनुवांशिक बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। कई बार लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर भी बीमारियों को दूर किया जा सकता है।

आनुवांशिक बीमारियां अक्सर पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होती हैं, और इस टेस्टिंग से समय रहते इनसे बचाव किया जा सकता है। इसलिए यूएई सरकार का यह निर्णय सही दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।

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