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इन राज्यों में SC-ST अपराध क्यों हैं सबसे अधिक? जानिए चौंकाने वाली सरकारी रिपोर्ट

इन राज्यों में SC-ST अपराध क्यों हैं सबसे अधिक? जानिए चौंकाने वाली सरकारी रिपोर्ट

देश में SC-ST (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) के खिलाफ बढ़ते अपराध चिंता का विषय बन गए हैं। एक सरकारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के कुछ राज्य इन अपराधों में सबसे आगे हैं। खासतौर पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य SC-ST अपराधों के मामले में शीर्ष पर हैं। यह रिपोर्ट न केवल अपराध के बढ़ते आंकड़ों की ओर इशारा करती है, बल्कि कोर्ट में इन मामलों के निपटारे की धीमी रफ्तार को भी उजागर करती है।

कौन से राज्य हैं सबसे आगे?

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2022 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ कुल 52,866 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 97.7% मामले केवल 13 राज्यों में ही सामने आए। इनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्य सबसे आगे रहे।

  1. उत्तर प्रदेश – 12,287 मामले
  2. राजस्थान – 8,651 मामले
  3. मध्य प्रदेश – 7,732 मामले
  4. बिहार – 6,799 मामले
  5. ओडिशा – 3,576 मामले
  6. महाराष्ट्र – 2,706 मामले

इन छह राज्यों में ही कुल मामलों का 81% दर्ज किया गया। इससे साफ है कि इन राज्यों में SC-ST के खिलाफ अत्याचार की समस्या गंभीर है। इन अपराधों को रोकने के लिए कई कदम उठाए जा चुके हैं, लेकिन सजा की दर में गिरावट इन कदमों की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े करती है।

अनुसूचित जनजातियों (ST) के खिलाफ अत्याचार

अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ भी अपराध के आंकड़े कुछ कम नहीं हैं। 2022 में ST के खिलाफ दर्ज 9,735 मामलों में से 98.91% मामले भी केवल 13 राज्यों में दर्ज हुए। सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश में (2,979 मामले), फिर राजस्थान (2,498 मामले) और ओडिशा (773 मामले) में दर्ज किए गए।

इन आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ ही राज्य SC-ST अत्याचारों के लिए ‘हॉटस्पॉट’ बन गए हैं, जहां ज्यादातर मामले दर्ज हो रहे हैं।

कोर्ट में निपटारे की धीमी रफ्तार

रिपोर्ट के मुताबिक, अपराध तो दर्ज हो रहे हैं, लेकिन उनका निपटारा बहुत धीमी गति से हो रहा है। 2022 में SC-ST मामलों में सजा की दर 39.2% से घटकर 32.4% रह गई। इससे न्यायिक प्रणाली की कमज़ोरी साफ झलकती है। कई राज्यों में अब तक SC-ST Act के तहत विशेष अदालतों का गठन नहीं हुआ है, जिससे इन मामलों का निपटारा और भी देरी से होता है।

सरकार द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के बावजूद 14 राज्यों के ज्यादातर जिलों में इन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें नहीं बनाई गई हैं। नतीजा यह है कि 2022 के अंत तक 17,166 मामलों की जांच अधूरी रह गई थी, जबकि ST के खिलाफ 2,702 मामलों की जांच लंबित थी।

सजा की दर में गिरावट

सबसे चिंताजनक बात यह है कि SC-ST अत्याचार मामलों में सजा की दर में गिरावट आई है। यह 2020 के 39.2% से घटकर 32.4% हो गई है। इसका कारण अदालतों में केसों का धीमा निपटारा और विशेष अदालतों की कमी है। इस कमी के चलते अपराधियों को सजा दिलाना मुश्किल हो जाता है, और इससे अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं।

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