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SRA Removes Defaulting Developer: बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला – SRA को डिफॉल्ट करने वाले डेवलपर को हटाने का अधिकार

SRA Removes Defaulting Developer: बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला - SRA को डिफॉल्ट करने वाले डेवलपर को हटाने का अधिकार

SRA Removes Defaulting Developer: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (SRA) के अधिकार को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि SRA डिफॉल्ट करने वाले डेवलपर को हटा सकती है, भले ही उस डेवलपर का दिवालियापन कानून के तहत रिजॉल्यूशन प्लान मंजूर हो चुका हो। यह फैसला न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि उन हजारों लोगों के लिए भी राहत की सांस लेकर आया है, जो सालों से अपने घर का इंतजार कर रहे हैं। आइए, इस पूरे मामले को आसान शब्दों में समझते हैं कि क्या हुआ और यह युवा पीढ़ी के लिए क्यों मायने रखता है।

यह कहानी ठाणे की एक झुग्गी बस्ती से शुरू होती है, जहां अनुदान प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को स्लम रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट सौंपा गया था। इस प्रोजेक्ट का मकसद था कि वहां रहने वाले लोगों को पक्के घर दिए जाएं और तब तक उन्हें ट्रांजिट रेंट मिले। लेकिन कंपनी ने न तो घर बनाए और न ही रेंट का भुगतान किया। इससे राजमुद्रा को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के लोग परेशान हो गए। कंपनी की हालत खराब होने पर उसे इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत रिजॉल्यूशन प्लान मिला, यानी उसे अपने कर्जे चुकाने का मौका दिया गया। लेकिन SRA ने कहा कि यह काफी नहीं है और कंपनी को प्रोजेक्ट से हटा दिया। डेवलपर ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की।

कोर्ट में जस्टिस अमित बोरकर ने 71 पेज के फैसले में साफ कहा कि IBC का मकसद भले ही कर्जे सुलझाना हो, लेकिन महाराष्ट्र स्लम एरियाज एक्ट 1971 जैसे कानून का उद्देश्य गरीब लोगों को घर देना है। उन्होंने बताया कि SRA का यह कदम पैसे वसूलने के लिए नहीं, बल्कि जनता के हित में उठाया गया एक जरूरी फैसला था। कोर्ट ने यह भी कहा कि IBC का ढाल लेकर डेवलपर अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता। यह सुनकर आज की युवा पीढ़ी को लग सकता है कि सिस्टम अब उनके हक के लिए भी लड़ रहा है, खासकर जब बात गरीब और कमजोर वर्ग की हो।

इस मामले में एक और अहम बात सामने आई। झुग्गीवासियों की सबसे बड़ी शिकायत थी कि डेवलपर ने न तो उनके घर बनाए और न ही ट्रांजिट रेंट दिया। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि यह रेंट कोई एहसान नहीं, बल्कि कानूनी हक है। सालों तक रेंट न मिलने से कई परिवार बेघर हो गए, जो स्लम रिहैबिलिटेशन की भावना के खिलाफ है। कोर्ट ने माना कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ पैसों का खेल नहीं, बल्कि लोगों के जीवन से जुड़ा मसला है। यह बात आज के युवाओं को यह सोचने पर मजबूर करती है कि सही मायनों में विकास क्या है।

फैसले में कोर्ट ने यह भी साफ किया कि IBC भले ही डेवलपर को नया जीवन दे, लेकिन जनता के हित को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। SRA को डिफॉल्ट करने वाले डेवलपर को हटाने का अधिकार (SRA Removes Defaulting Developer) इसलिए जरूरी है, ताकि प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो और लोगों को उनका हक मिले। कोर्ट ने अनुदान प्रॉपर्टीज को आखिरी मौका दिया कि वह एक ठोस प्लान पेश करे। इसमें प्रोजेक्ट पूरा करने की समयसीमा, बकाया रेंट और पिछले नुकसान की भरपाई शामिल होनी चाहिए। अगर कंपनी ऐसा नहीं कर पाई, तो SRA को नया डेवलपर नियुक्त करने की छूट होगी।

इसके साथ ही, कोर्ट ने SRA को यह भी निर्देश दिया कि नए डेवलपर को ऐसी शर्तें लगानी चाहिए, जिससे पुरानी देरी की भरपाई हो सके। यह सुनकर आज का युवा समझ सकता है कि कानून सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि असल जिंदगी में भी काम करता है। यह फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जो सालों से अपने घर का सपना देख रहे हैं। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस फैसले पर रोक लगाने की मांग को खारिज किया जाता है, यानी यह तुरंत लागू होगा।

यह कहानी सिर्फ एक डेवलपर और SRA की नहीं है। यह उस संतुलन की बात करती है, जो कानून और इंसाफ के बीच होना चाहिए। आज की पीढ़ी, जो सोशल मीडिया और खबरों के जरिए हर मुद्दे को देखती है, इसे एक मिसाल के तौर पर ले सकती है। यह दिखाता है कि सिस्टम में बदलाव संभव है, बशर्ते सही दिशा में कदम उठाए जाएं।


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