ऑनटीवी स्पेशल

भगवान जगन्नाथ की महिमा अपरंपार: मूर्ति जलाने पर नहीं जली तो बंगाल सुल्तान के कमांडर ने गंगा में फेंकी, बिसरा मृदंग में छिपाकर लाए, रथयात्रा में विराजे

भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ, जो श्रीकृष्ण के अवतार माने जाते हैं, अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ हर साल ओडिशा के पुरी शहर में रथ पर सवारी करते हैं। यह रथयात्रा उन्हें उनकी मौसी के घर, गुंडिचा मंदिर तक ले जाती है, जहां वे सात दिन रुकते हैं। इस यात्रा में बहुत से श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

1568 में बंगाल के सुल्तान सुलेमान खान ने ओडिशा पर आक्रमण किया। उसने अपने बेटे बायजिद खान और कमांडर कालापहाड़ को ओडिशा के राजा मुकुंद देव को हराने का आदेश दिया। कालापहाड़ ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर पर कब्जा कर लिया और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को नष्ट करने की कोशिश की। उसने मूर्ति को हुगली नदी के किनारे जलाने का प्रयास किया, लेकिन मूर्ति नहीं जली, तो उसने मूर्ति को गंगा नदी में फेंक दिया।

भगवान जगन्नाथ

भगवान को बचाने की कोशिश:
उस समय बिसरा मोहंती नामक भगवान जगन्नाथ के एक भक्त ने मूर्ति को गंगा से निकालने की कोशिश की। उन्होंने मूर्ति को सुरक्षित निकाल लिया और इसे ढोलक जैसे वाद्ययंत्र मृदंग में छिपा दिया। बिसरा ने 1586 तक भगवान की पूजा अपने गांव में गुप्त रूप से की, जब तक कि राजा रामचंद्र देव ने मूर्ति को फिर से पुरी के मंदिर में स्थापित नहीं किया।

भगवान के बारे में सपना:
राजा रामचंद्र देव को एक बार सपने में भगवान जगन्नाथ का निर्देश मिला। उन्होंने बिसरा से मूर्ति मंगवाई और इसे पुरी के मंदिर में पुनः स्थापित किया। राजा ने बिसरा को सम्मानित किया और उन्हें पुरुषोत्तम क्षेत्र का नायक (प्रमुख) बनाया।

भगवान जगन्नाथ का संबंध ओडिशा की आदिवासी संस्कृति से भी है। प्राचीन समय में कोरापुट जिले में सबर जनजाति भगवान की पत्थर की प्रतिमा की पूजा करती थी। पुरी के राजा ने अपने सेनापति विद्यापति को भेष बदलकर वहां भेजा। विद्यापति ने सबर राजा की बेटी ललिता से शादी की और भगवान की प्रतिमा का स्थान जानने के लिए सरसों के बीज छीटकर रास्ता चिन्हित किया। बाद में राजा ने कोरापुट पर चढ़ाई की और भगवान की प्रतिमा को पुरी ले आया।

जगन्नाथ रथयात्रा का महत्व:
हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से यह रथयात्रा प्रारंभ होती है। इसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस यात्रा का विशेष महत्व है और इसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं।

जगन्नाथ मंदिर कला और शिल्प का संरक्षक है। यहां पर प्राचीन समय में महारी नामक नर्तकियां होती थीं, जो भगवान की पूजा के दौरान नृत्य करती थीं। इन्होंने ओडिसी नृत्य को विकसित किया, जो आज भी मंदिर की महत्वपूर्ण परंपरा है।

ये भी पढ़ें: धोनी का जन्मदिन: साक्षी ने छुए पैर, आधी रात कटा केक, सलमान खान रहे स्पेशल गेस्ट; देखें बर्थडे की अनदेखी झलकियां

You may also like