संविधान हत्या दिवस: बीजेपी लोकसभा चुनाव में अपनी खोई साख को फिर से मजबूत करने के लिए तेजी से काम कर रही है। उसे लगता है कि विपक्ष के संविधान मुद्दे को जितना जल्दी और प्रभावी ढंग से खत्म किया जाए, पार्टी के भविष्य के लिए उतना ही फायदेमंद होगा।
पिछले चुनाव में बीजेपी ने ‘370 पार’ का नारा दिया था, लेकिन परिणामस्वरूप उन्हें केवल 240 सीटें मिलीं, जो अपेक्षित संख्या से 100 सीटें कम थी। इसके बाद पार्टी में कई दौर की चर्चाएं हुईं, जिनमें सबसे अधिक चर्चा संविधान के मुद्दे पर हुई। कांग्रेस और INDIA गठबंधन ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था, और लोगों को बताया था कि बीजेपी 400 सीटें इसलिए मांग रही है ताकि वह संविधान बदल सके।
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार ने हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस दिन को मनाया जाना हमें याद दिलाएगा कि जब संविधान का दुरुपयोग हुआ था, तो क्या परिणाम हुए थे।
25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई थी। उस समय की सरकार ने सत्ता का दुरुपयोग किया था और लोगों पर अत्याचार किए थे। इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का उद्देश्य उन लोगों को श्रद्धांजलि देना है जिन्होंने आपातकाल की कठिनाइयों का सामना किया था और लोगों को यह याद दिलाना है कि भविष्य में किसी भी तरह से सत्ता का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संविधान को हाथ में लेकर प्रचार किया और लोगों को समझाने की कोशिश की कि बीजेपी अगर सत्ता में आती है तो संविधान को बदल देगी। इस संदेश को लेकर उन्होंने बीजेपी नेताओं के बयानों का भी जिक्र किया और इससे कांग्रेस को चुनाव में फायदा हुआ।
विपक्ष के इस प्रचार से बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ और वह स्पष्ट बहुमत नहीं पा सकी। विपक्ष के सांसदों ने भी लोकसभा में संविधान को हाथ में लेकर शपथ ली और नारे लगाए, जिससे बीजेपी सतर्क हो गई।
अब बीजेपी ने विपक्ष के संविधान मुद्दे को कमजोर करने के लिए ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने की घोषणा की है। इससे विपक्ष के इस नैरेटिव को कमजोर करने की कोशिश की जाएगी। बीजेपी इस दिन को बड़े आयोजनों के माध्यम से मनाएगी और 1975 के आपातकाल के घावों को ताजा कर लोगों को यह याद दिलाएगी कि कैसे इंदिरा गांधी ने नियम और संविधान को ताक पर रखकर आपातकाल लागू किया था।
आपातकाल के दौरान 21 महीनों तक लोगों के बुनियादी अधिकार छीने गए थे। विपक्ष के बड़े नेताओं और पत्रकारों को जेल में बंद कर दिया गया था। इस कठिन समय में किसी में भी इंदिरा गांधी के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं थी।
बीजेपी अब अपनी खोई साख को फिर से पाने के लिए तेजी से काम कर रही है। विपक्ष के मजबूत वापसी के बाद बीजेपी भी सतर्क हो गई है और उसे पता है कि लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई के लिए उसे नए सिरे से रणनीति तैयार करनी होगी।
बीजेपी को यह समझ में आ गया है कि विपक्ष के संविधान मुद्दे को जितना जल्दी और प्रभावी ढंग से खत्म किया जाए, पार्टी के भविष्य के लिए उतना ही फायदेमंद होगा। इसके लिए पार्टी ने ‘संविधान हत्या दिवस’ की रणनीति अपनाई है, जो विपक्ष के इस मुद्दे को कमजोर करने में मदद करेगी।
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