World Alzheimer’s Day 2024: अल्जाइमर, जिसे डिमेंशिया के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी बीमारी है जो याददाश्त से जुड़ी होती है। आमतौर पर यह बीमारी बुजुर्गों में देखी जाती है, लेकिन अब कम उम्र के लोग भी इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं। अल्जाइमर की वजह से मस्तिष्क के कोशिकाएं धीरे-धीरे खत्म होने लगती हैं, जिससे व्यक्ति की याददाश्त प्रभावित होती है। हर साल 21 सितंबर को World Alzheimer’s Day मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक किया जा सके।
अल्जाइमर के लक्षण और इसके बढ़ते मामले
अल्जाइमर के शुरुआती लक्षणों में व्यक्ति का बार-बार चीजें भूल जाना, निर्णय लेने में समस्या होना, और रोजमर्रा के कामों में दिक्कत महसूस करना शामिल है। आमतौर पर, यह समस्या उम्र के साथ बढ़ती है, लेकिन हाल के दिनों में कम उम्र के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। 30 से 40 साल की उम्र में अल्जाइमर के मामलों का बढ़ना एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है।
डॉक्टर लिंडा नाज़रत, जो मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की कंसल्टेंट पैथोलॉजिस्ट हैं, के अनुसार, अल्जाइमर एक न्यूरो-डीजेनेरेटिव डिजीज है, जो मस्तिष्क में प्रोटीन के असामान्य जमाव की वजह से होती है। इसका असर सबसे ज्यादा मस्तिष्क की कोशिकाओं पर पड़ता है, जिससे उनका धीरे-धीरे काम करना बंद हो जाता है। इस बीमारी में एमिलॉयड प्लेक और टाऊ टेंगल्स नाम के दो प्रोटीन मस्तिष्क में जम जाते हैं, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है।
जेनेटिक कारण और जोखिम
अल्जाइमर से जुड़े कई सारे जेनेटिक कारण भी हैं, जो किसी व्यक्ति में इस बीमारी के विकास का जोखिम बढ़ा सकते हैं। अगर किसी के परिवार में पहले से अल्जाइमर से पीड़ित लोग हैं, तो उसका खुद इस बीमारी का शिकार होने का खतरा ज्यादा हो जाता है। डॉक्टर लिंडा ने बताया कि पारिवारिक अल्जाइमर के मामले में PSEN1, PSEN2 और APP जैसे जीन में म्यूटेशन का योगदान होता है, जिससे यह बीमारी शुरुआती उम्र में हो सकती है। इसके अलावा, एपोलिपोप्रोटीन E (APOE) जीन का म्यूटेशन भी इस बीमारी के बढ़ने का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
खराब जीवनशैली और अन्य कारण
कम उम्र में अल्जाइमर होने के पीछे खराब जीवनशैली भी एक बड़ा कारण है। डॉक्टर लिंडा के अनुसार, आजकल के तनावपूर्ण जीवन, खराब खानपान, नींद की कमी और शारीरिक गतिविधियों की कमी से यह बीमारी कम उम्र में भी हो रही है। इसके अलावा, मधुमेह, हृदय रोग और पर्यावरणीय कारक भी इस बीमारी के पीछे जिम्मेदार हैं।
यह भी देखा गया है कि जो लोग अधिक मानसिक तनाव में रहते हैं या जिनका जीवनशैली अनुशासित नहीं है, उनमें इस बीमारी का खतरा अधिक होता है। हालांकि, इसका इलाज अभी तक संभव नहीं है, लेकिन इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता और सही जीवनशैली का पालन बहुत जरूरी है।
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