पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार 46 लंबे वर्षों के बाद गुरुवार को अंततः खोला गया। यह घटना इतनी महत्वपूर्ण थी कि मंदिर के आंतरिक कक्षों में भक्तों का प्रवेश पूरी तरह से रोक दिया गया था। इस ऐतिहासिक क्षण को देखने के लिए प्रशासन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकारी मौजूद थे। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इस अवसर पर पुरी के महाराजा को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
आइए जानते हैं कि पुरी के महाराजा का जगन्नाथ मंदिर से क्या गहरा संबंध है। वास्तव में, पुरी के राजा महाराजा गजपति जगन्नाथ मंदिर के मुख्य सेवक हैं। इसी कारण उनकी उपस्थिति इस महत्वपूर्ण अवसर पर अनिवार्य थी। मंदिर के मुख्य प्रशासक अरविंद पाढ़ी, कलेक्टर, और एसपी भी इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना और रोचक है। इस भव्य मंदिर का निर्माण 1150 ईस्वी में ओडिशा के गंग राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य 1161 ईस्वी में पूरा हुआ था, जो आज से लगभग 861 वर्ष पहले की बात है। इतने लंबे समय से यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है।
अब सवाल उठता है कि आखिर इस रत्न भंडार को क्यों खोला गया? भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के सुपरिंटेंडेंट डीबी गडनायक ने बताया कि रत्न भंडार को मरम्मत के उद्देश्य से खोला गया है। सबसे पहले इसका विस्तृत सर्वेक्षण किया जाएगा। जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के मुख्य न्यायाधीश रथ के अनुसार, रत्न भंडार के दोनों हिस्सों में नए ताले लगाए गए हैं। इसके अलावा, भंडार से निकाले गए सभी बहुमूल्य सामानों की डिजिटल सूची तैयार की जाएगी।
यह रत्न भंडार पिछले कई दशकों से विवादों में रहा है। 1978 के बाद से इसे नहीं खोला गया था। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर ओडिशा सरकार पर कई सवाल उठाए थे। राज्य सरकार ने जवाब में कहा था कि ‘रत्न भंडार’ के भीतरी कक्ष की चाबी खो गई है। इस बयान ने और भी कई सवाल खड़े कर दिए। लोग जानना चाहते थे कि आखिर चाबी गई कहां और इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
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