विशेष राज्य का दर्जा: बिहार की विशेष राज्य के दर्जे की कहानी ऐसी है जो देश के आर्थिक विकास और राज्यों के बीच पैसे के बंटवारे के इतिहास में गहराई से जुड़ी हुई है। आइए इस जटिल कहानी को शुरू से समझें और जानें कि आखिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिल पाया।
1969 में देश के विकास के लिए बनी एक खास कमेटी, जिसे राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) कहते हैं, की एक बहुत महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में पहली बार यह बात उठी कि राज्यों को पैसा कैसे दिया जाए। इससे पहले, राज्यों को पैसा देने का कोई पक्का तरीका नहीं था। कभी किसी राज्य को ज्यादा मिल जाता, तो कभी किसी को कम।
इस बैठक में डी आर गाडगिल नाम के एक समझदार व्यक्ति ने एक नया तरीका सुझाया। इस तरीके को ‘गाडगिल फॉर्मूला’ कहा गया। इस फॉर्मूले के तहत, कुछ खास राज्यों जैसे असम, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड को ज्यादा मदद देने की बात कही गई। इन राज्यों को ‘विशेष श्रेणी के राज्य’ कहा गया। यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि ये राज्य कई मायनों में पिछड़े हुए थे और उन्हें ज्यादा मदद की जरूरत थी।
उसी साल यानी 1969 में, देश के पैसे के मामलों को देखने वाली एक और कमेटी, जिसे 5वां वित्त आयोग कहते हैं, ने ‘विशेष श्रेणी राज्य’ की सोच को और मजबूत किया। इसके पीछे यह सोच थी कि कुछ इलाके बहुत पुराने समय से पिछड़े हुए हैं और उन्हें अलग तरह की मदद चाहिए।
इन राज्यों को केंद्र सरकार से ज्यादा पैसा मिलने लगा। साथ ही, उन्हें टैक्स में भी छूट मिली। 2014-15 तक, ऐसे 11 राज्य थे जिन्हें यह खास दर्जा मिला हुआ था। इससे इन राज्यों को अपना विकास करने में बहुत मदद मिली।
2014 में देश की योजनाओं को बनाने और लागू करने के तरीके में एक बड़ा बदलाव आया। पुरानी योजना आयोग की जगह नीति आयोग बना। इसके साथ ही, 14वें वित्त आयोग ने कुछ नए सुझाव दिए। इन सुझावों के मुताबिक, पुराना गाडगिल फॉर्मूला बंद कर दिया गया।
इसकी जगह, सभी राज्यों को केंद्र के टैक्स का 42% हिस्सा देने का फैसला हुआ। यह पहले के 32% से काफी ज्यादा था। इसका मतलब यह हुआ कि अब सभी राज्यों को ज्यादा पैसा मिलने लगा, न कि सिर्फ कुछ खास राज्यों को।
2015 से, 14वें वित्त आयोग के सुझाव लागू हुए। इसके तहत, पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर बाकी सभी राज्यों के लिए ‘विशेष श्रेणी’ की सोच खत्म कर दी गई। अब हर राज्य को उसकी जरूरत के हिसाब से पैसा देने की बात कही गई।
बाद में, 15वें वित्त आयोग ने राज्यों का हिस्सा 42% से घटाकर 41% कर दिया। लेकिन इसका मकसद यही था कि सभी राज्य एक साथ आगे बढ़ें और किसी एक राज्य को खास दर्जा देने की जरूरत न पड़े।
हाल ही में, देश की संसद में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठी। लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को मानने से इनकार कर दिया। सरकार ने 2012 में बनी एक रिपोर्ट का हवाला दिया। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि बिहार उन शर्तों को पूरा नहीं करता जो एक विशेष राज्य के लिए जरूरी हैं।
एक राज्य को विशेष राज्य का दर्जा तभी मिलता है जब उसमें कुछ खास बातें हों। जैसे:
- वहाँ पहाड़ी या दुर्गम इलाके हों
- वहाँ कम लोग रहते हों या ज्यादातर आदिवासी लोग हों
- वह किसी दूसरे देश की सीमा पर हो
- वहाँ की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढाँचा कमजोर हो
- राज्य के पास अपने खर्चे चलाने के लिए पर्याप्त पैसा न हो
बिहार के बारे में सरकार की राय: सरकार का कहना है कि बिहार में ये विशेष परिस्थितियाँ नहीं हैं। इसलिए उसे विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि पहले जिन राज्यों को यह दर्जा दिया गया था, उनमें कुछ खास बातें थीं जिन पर ध्यान देना जरूरी था। लेकिन बिहार में ऐसी कोई खास बात नहीं है।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न मिलने के कारण:
- बिहार में ज्यादातर मैदानी इलाके हैं, पहाड़ी या दुर्गम इलाके नहीं हैं।
- बिहार की आबादी काफी ज्यादा है और यहाँ आदिवासी लोगों की संख्या भी कम है।
- बिहार किसी दूसरे देश की सीमा पर नहीं है।
- हालांकि बिहार की अर्थव्यवस्था कमजोर है, लेकिन यह अकेला कारण विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए पर्याप्त नहीं माना जाता।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न मिलने के पीछे कई कारण हैं। हालांकि बिहार विकास के कई पैमानों पर पिछड़ा हुआ है, लेकिन वर्तमान नीतियों के तहत उसे विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल पा रहा है। यह स्थिति बिहार के विकास के लिए एक चुनौती है और इस पर आगे भी बहस जारी रहने की संभावना है।
सरकार का मानना है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के बजाय, उसे केंद्र से मिलने वाली मदद और टैक्स के पैसे में हिस्सेदारी बढ़ाकर उसकी जरूरतें पूरी की जा सकती हैं। लेकिन बिहार के नेता इस बात से सहमत नहीं हैं और वे लगातार विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बिहार अपनी मांग में सफल होता है या फिर उसे अपने विकास के लिए कोई नया रास्ता खोजना पड़ेगा। यह मुद्दा न सिर्फ बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह तय होगा कि भविष्य में राज्यों को मदद देने का क्या तरीका अपनाया जाएगा।
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