Malegaon Sugar Factory: मालेगांव सहकारी चीनी कारखाने के चुनाव परिणाम ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। इस बार के चुनाव में उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अगुवाई वाला नीलकंठेश्वर पैनल ने शानदार जीत हासिल की। 21 में से 20 सीटों पर कब्जा जमाकर अजित पवार ने न केवल अपनी ताकत दिखाई, बल्कि राज्य के सहकारी क्षेत्र में अपनी पकड़ को और मजबूत किया। दूसरी ओर, शरद पवार के बलिराजा पैनल को एक भी सीट नहीं मिली, जो उनके लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका साबित हुआ। यह चुनाव न सिर्फ मालेगांव के लिए, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के सहकारी और राजनीतिक परिदृश्य के लिए महत्वपूर्ण था।
चुनाव 22 जून को हुआ, और मतगणना की प्रक्रिया करीब 35 घंटे तक चली। इस दौरान नीलकंठेश्वर पैनल ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। एकमात्र सीट जो विपक्षी खेमे को मिली, वह थी सांगवी समूह की, जहां BJP समर्थित चंद्रराव तावरे ने अजित पवार के उम्मीदवार वीरेंद्र तावरे को हराया। लेकिन चंद्रराव के पैनल पार्टनर रंजन तावरे चुनाव हार गए। इस जीत ने नीलकंठेश्वर पैनल की ताकत को साफ तौर पर उजागर किया, लेकिन हारने वाले पक्ष ने इसे पैसे की ताकत की जीत करार दिया। रंजन तावरे ने कहा कि यह जीत जनता की ताकत पर नहीं, बल्कि धनबल पर आधारित थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि अजित पवार का सपना अभी भी अधूरा है।
मालेगांव चीनी कारखाना (Malegaon Sugar Factory) महाराष्ट्र के सहकारी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी स्थापना से लेकर अब तक यह न केवल किसानों और मजदूरों के लिए आर्थिक सहारा रहा है, बल्कि यह राजनीतिक प्रभाव का भी केंद्र रहा है। इस बार के चुनाव में चार मुख्य पैनल मैदान में थे। अजित पवार का नीलकंठेश्वर पैनल, शरद पवार का बलिराजा पैनल, BJP समर्थित सहकार बचाव शेतकरी पैनल और एक स्वतंत्र पैनल, जो मजदूरों और किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहा था। इनमें से नीलकंठेश्वर पैनल ने बाजी मार ली, जिसने अजित पवार की रणनीति और प्रभाव को और स्पष्ट किया।
चुनाव प्रचार के दौरान अजित पवार ने चीनी कारखाने के लिए ₹500 करोड़ की वित्तीय सहायता का वादा किया था। कई विश्लेषकों का मानना है कि इस वादे ने मतदाताओं को प्रभावित किया। मालेगांव जैसे क्षेत्र में, जहां चीनी कारखाना स्थानीय अर्थव्यवस्था का आधार है, ऐसे वादों का असर गहरा होता है। कारखाने की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने का यह वादा न केवल मतदाताओं के लिए आकर्षक था, बल्कि यह अजित पवार की रणनीति का भी हिस्सा था, जिसने उनके पैनल को भारी समर्थन दिलाया।
वहीं, शरद पवार के बलिराजा पैनल को इस बार करारी हार का सामना करना पड़ा। युवा नेता युगेंद्र पवार के नेतृत्व में यह पैनल उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। शरद पवार ने इस हार के बाद अजित पवार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जो लोग सरकार में बड़े पदों पर हैं, उन्हें सहकारी संस्थाओं के चुनाव में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। अपने 40 साल के करियर में उन्होंने कभी सत्ता में रहते हुए ऐसे चुनाव नहीं लड़े। यह बयान न केवल उनकी हताशा को दर्शाता है, बल्कि सहकारी क्षेत्र में नैतिकता और सत्ता के उपयोग पर भी सवाल उठाता है।
मालेगांव चीनी कारखाने का यह चुनाव (Sugar Factory Polls) सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है। यह महाराष्ट्र की राजनीति में शक्ति संतुलन को दर्शाता है। सहकारी क्षेत्र, खासकर चीनी कारखाने, लंबे समय से राजनीतिक प्रभाव का केंद्र रहे हैं। ये कारखाने न केवल आर्थिक गतिविधियों को चलाते हैं, बल्कि स्थानीय नेताओं को समुदाय में अपनी ताकत दिखाने का मौका भी देते हैं। अजित पवार की इस जीत ने उनकी रणनीति और प्रभाव को और मजबूत किया है, जबकि शरद पवार के लिए यह हार एक गंभीर चिंता का विषय है।
इस जीत ने अजित पवार को सहकारी क्षेत्र में और मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है। लेकिन इसके साथ ही, इसने सहकारी संस्थाओं में सत्ता और धन के उपयोग पर सवाल भी खड़े किए हैं। मालेगांव के इस चुनाव ने एक बार फिर साबित किया कि सहकारी क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए रणनीति, संसाधन और स्थानीय प्रभाव का मिश्रण कितना महत्वपूर्ण है।
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