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1856 Widow Remarriage Act: विधवा होना कलंक था, फिर 16 जुलाई ने तोड़ दी सारी बेड़ियाँ!

1856 Widow Remarriage Act: विधवा होना कलंक था, फिर 16 जुलाई ने तोड़ दी सारी बेड़ियाँ!

1856 Widow Remarriage Act: 16 जुलाई 1856 को भारत में एक ऐसा कानून बना, जिसने लाखों हिंदू विधवाओं की जिंदगी बदल दी। हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 ने विधवाओं को दोबारा शादी करने का हक दिया। उस समय विधवा होना जैसे जिंदगी का अंत था। न शादी की इजाजत, न सम्मान, न ही कोई सहारा। सफेद कपड़े, तिरस्कार और अकेलापन ही उनकी जिंदगी थी। कई बार तो शारीरिक शोषण भी सहना पड़ता था। सती प्रथा पर 1829 में रोक लग चुकी थी, लेकिन सामाजिक जुल्म कम नहीं हुए थे।

इस दौर में पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने हिम्मत दिखाई। उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों का गहरा अध्ययन किया और तर्कों से साबित किया कि धर्म विधवा विवाह के खिलाफ नहीं है। उनकी मेहनत से ब्रिटिश सरकार ने यह कानून पास किया। इसने न सिर्फ विधवाओं को शादी का अधिकार दिया, बल्कि उनके बच्चों को भी कानूनी मान्यता दी।

हालांकि, यह बदलाव आसान नहीं था। कई जगहों पर समाज ने इस कानून का विरोध किया और शादी करने वाली विधवाओं को बहिष्कार झेलना पड़ा। फिर भी, यह कानून महिलाओं के हक के लिए एक मजबूत कदम था। इसने बाल विवाह रोकने, लड़कियों की शिक्षा और संपत्ति के अधिकार जैसी लड़ाइयों को भी बल दिया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर की इस कोशिश ने लाखों महिलाओं को नई जिंदगी दी।

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