मुंबई के काले अध्याय के रूप में याद किए जाने वाले 1992 के सांप्रदायिक दंगों और 1993 के बम धमाकों से सैकड़ों लोगों की जान गई थी और कई लोग लापता हो गए थे। इन घटनाओं ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया था।
तीन दशक बाद, महाराष्ट्र सरकार ने उन लोगों के परिवारों को मुआवज़ा देने की पहल की है, जो इन दुखद घटनाओं में मारे गए या लापता हो गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने पीड़ितों के कानूनी उत्तराधिकारियों या परिवार के सदस्यों से आगे आने की अपील की है।
मुआवज़े की प्रक्रिया पूरी करने के लिए मुंबई शहर और मुंबई उपनगर कलेक्टर के कार्यालयों में आवश्यक दस्तावेजों के साथ एक महीने के भीतर संपर्क करने को कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस बात के लिए आलोचना की थी कि उसने लापता व्यक्तियों के कानूनी उत्तराधिकारियों का पता लगाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। साथ ही कोर्ट ने सरकार को 1998 से 9% ब्याज के साथ मुआवजा राशि देने का भी निर्देश दिया है।
सरकार ने उन मृत या लापता व्यक्तियों की सूची भी जारी की है जिनके परिवारों का अभी पता नहीं चल पाया है।
जो कोई भी लाभ लेने के लिए झूठे दस्तावेज या भ्रामक जानकारी देगा, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।