मुंबई जैसी जगह में 90s के दशक में गैंगवार चलती ही रहती थी। दिन-दहाड़े खून-खराबा, पुलिस से बचकर भागना…सब बॉलीवुड की फिल्मों जैसा लगता था! आजकल के गैंगस्टर तो छोटे-मोटे गुंडे हैं, उस ज़माने में बड़े-बड़े डॉन हुआ करते थे – एजाज़ लकडावाला, छोटा राजन वगैरह!
1996 में एक दिन दो पुलिसवाले मस्जिद बंदर इलाके में गश्त कर रहे थे। भीड़ में से अचानक उन्हें दो आदमी भागते हुए दिखाई दिए। एक के पैंट पर खून के बड़े-बड़े धब्बे थे! पुलिस ने शक के आधार पर उनको पकड़ा, और तलाशी लेने पर पता चला कि इनके पास रिवॉल्वर और कारतूस भी थे।
थोड़ी ही दूरी पर, मोहम्मद अली रोड में एक व्यापारी, सैयद फरीद मकबूल हुसैन को उसी समय किसी ने गोली मार दी थी। चश्मदीदों के मुताबिक, दो लोग दुकान से भागते हुए दिखे थे। पुलिस ने दोनों घटनाओं को जोड़ा, और उन दो संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
उनमें से एक था कुख्यात एजाज़ लकडावाला। पुलिस का दावा था कि गैंग rivalry की वजह से ये हत्या हुई है, पर कोई ठोस सबूत नहीं थे। 1998 में एजाज़ किसी तरह भाग निकला। उसका साथी, राजेंद्र पारकर कोर्ट में पेश हुआ, पर सबूतों के अभाव में बरी हो गया। छोटा राजन, जो इस साजिश में शामिल था, वो तो उस समय भागा हुआ था!
2015 में छोटा राजन को बाली (इंडोनेशिया) से वापस लाया गया, और इस केस में भी उसका नाम जोड़ा गया। 2021 में ट्रायल शुरू हुआ। पर इतने सालों बाद, ना कोई चश्मदीद था, ना ही और कोई पक्के सबूत। 7 मार्च को छोटा राजन को भी बरी कर दिया गया।
लेकिन एजाज़ 2020 में फिरसे पकड़ में आ गया। इस बार, CBI के पास पुराने ज़माने के दो हवलदारों की गवाही थी, और सबसे बढ़कर – वो खून से सने हुए पैंट और रिवॉल्वर, जिससे फरीद को मारा गया था। आखिरकार, कोर्ट ने एजाज़ को उम्रकैद की सजा सुना ही दी!
कितना अजीब है ना – 1996 में जुर्म हुआ, और सजा मिली 2024 में! इंसाफ के पहिए कितनी धीमी गति से चलते हैं…और उसमें भी, अगर सबूत ना मिले तो बड़े-बड़े गुंडे छूट जाते हैं। पर इस केस में, उन पुलिसवालों की सजगता की दाद देनी पड़ेगी – अगर उन्होंने खून से सने पैंट पर ध्यान ना दिया होता, तो आज भी ये मर्डर अनसुलझा ही रहता!