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Dalit student’s IIT admission: 15 मिनट की देरी से टूटा सपना, CJI ने दिलाया IIT में दाखिला

Dalit student's IIT admission: 15 मिनट की देरी से टूटा सपना, CJI ने दिलाया IIT में दाखिला
Dalit student’s IIT admission: हाल ही में, एक गरीब दलित छात्र के IIT धनबाद में दाखिले का मामला सुर्खियों में रहा। यह केस दिखाता है कि कैसे गरीबी अच्छे छात्रों के सपनों को तोड़ सकती है, लेकिन न्यायपालिका की मदद से उन्हें फिर से जीवित किया जा सकता है।

मेधावी छात्र का संघर्ष

दलित छात्र का IIT प्रवेश (Dalit student’s IIT admission) एक ऐसा मुद्दा है जो समाज में बराबरी और शिक्षा के अधिकार से जुड़ा हुआ है। इस केस में, एक मेधावी छात्र ने JEE एडवांस्ड परीक्षा पास की थी और उसे IIT धनबाद में दाखिला मिला था। लेकिन गरीबी की वजह से वह समय पर फीस जमा नहीं कर पाया और उसका दाखिला रद्द हो गया।

छात्र का नाम अतुल है और वह उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के खतौली गांव का रहने वाला है। उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं। अतुल ने बहुत मेहनत करके JEE एडवांस्ड की कठिन परीक्षा पास की थी। लेकिन जब IIT धनबाद में दाखिले का समय आया, तो उसके पास 17,500 रुपये की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे।

न्याय के लिए लड़ाई

अतुल और उसके पिता ने पैसे का इंतजाम करने की पूरी कोशिश की। उन्होंने आखिरी दिन शाम 4:45 बजे तक पैसे जुटाए और अतुल के भाई के बैंक खाते में जमा कराए। लेकिन जब तक अतुल फीस जमा कर पाता, शाम 5 बज चुके थे और दाखिले की आखिरी तारीख निकल गई थी। इस तरह महज 15 मिनट की देरी से उसका IIT में पढ़ने का सपना टूट गया।

दलित छात्र का IIT प्रवेश (Dalit student’s IIT admission) सुनिश्चित करने के लिए अतुल हार नहीं माना। उसने और उसके पिता ने न्याय पाने के लिए कई जगह गुहार लगाई। उन्होंने यूनिवर्सिटी, एससी-एसटी आयोग, झारखंड हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया। लेकिन 3 महीने तक भटकने के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

आखिरकार अतुल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उसने अपनी बात मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के सामने रखी। CJI चंद्रचूड़ ने इस मामले को गंभीरता से लिया और IIT में दलित छात्र का प्रवेश (Dalit student’s admission in IIT) सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए।

सुप्रीम कोर्ट ने IIT धनबाद को अतुल को दाखिला देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रतिभाशाली छात्रों को निराश नहीं किया जाना चाहिए। CJI चंद्रचूड़ ने अतुल को शुभकामनाएं दीं और कहा, “ऑल द बेस्ट… अच्छा करिए।”

यह फैसला बताता है कि न्यायपालिका किस तरह गरीब और वंचित तबके के लोगों के अधिकारों की रक्षा कर सकती है। इससे यह भी साबित होता है कि अगर कोई अपने हक के लिए लड़ता रहे तो उसे न्याय मिल सकता है।

अतुल के केस से कई सवाल भी उठते हैं। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में गरीब छात्रों के लिए पर्याप्त सहायता है? क्या टॉप संस्थानों में प्रवेश के लिए सिर्फ मेधा काफी है या आर्थिक स्थिति भी एक बड़ी बाधा बन जाती है? क्या सरकार को ऐसे मेधावी लेकिन गरीब छात्रों के लिए विशेष फंड बनाना चाहिए?

इस केस से यह भी सीख मिलती है कि कभी हार नहीं माननी चाहिए। अगर आप सही हैं तो अपने हक के लिए आखिर तक लड़ते रहना चाहिए। अतुल ने यही किया और आज वह IIT में पढ़ने का अपना सपना पूरा कर पाएगा।

उम्मीद है कि अतुल का केस अन्य गरीब और मेधावी छात्रों के लिए प्रेरणा का काम करेगा। साथ ही यह सरकार और शिक्षा संस्थानों को भी सोचने पर मजबूर करेगा कि वे गरीब छात्रों की मदद के लिए क्या कर सकते हैं। ताकि भविष्य में किसी अतुल को अपने सपने टूटते न देखने पड़ें।

हालांकि इस केस में न्याय मिला, लेकिन यह सिर्फ एक उदाहरण है। देश में ऐसे कई छात्र होंगे जो आर्थिक तंगी की वजह से अपने सपने पूरे नहीं कर पाते। जरूरत है कि हम एक ऐसी व्यवस्था बनाएं जहां हर मेधावी छात्र को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ने का मौका मिले।

शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश आगे बढ़े तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर प्रतिभाशाली बच्चे को अपनी क्षमता दिखाने का पूरा अवसर मिले। फिर चाहे वह किसी भी वर्ग या पृष्ठभूमि से आता हो।

अतुल का केस हमें याद दिलाता है कि न्याय और समानता के लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत है। यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बदलाव की मांग भी है। हमें ऐसा समाज बनाना होगा जहां हर बच्चा बिना किसी भेदभाव के अपने सपने पूरे कर सके।

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