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मगरमच्छ के आंसू न बहाएं, दिल्ली अपनी संस्कृति खो रही है… हाईकोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

मगरमच्छ के आंसू न बहाएं, दिल्ली अपनी संस्कृति खो रही है... हाईकोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

दिल्ली हाईकोर्ट ने मयूर विहार में यमुना खादर क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के अभियान का समर्थन किया है। कोर्ट ने कहा कि 2006 से पहले अस्तित्व में नहीं आने वाले झुग्गी-झोपड़ियों को पुनर्वास का अधिकार नहीं है। यमुना के मैदानों पर अतिक्रमण के कारण दिल्ली में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो रही है।

हाईकोर्ट का सख्त रुख

अदालत ने अवैध निर्माण करने वालों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि दिल्ली अपनी जड़ों को खो रही है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में आने वाली बाढ़ मानव निर्मित है क्योंकि यमुना के मैदानी इलाकों पर बड़ी संख्या में लोग अवैध निर्माण कर रहे हैं। इससे पानी के निकलने का रास्ता बंद हो गया है और शहर में बाढ़ आ रही है।

डी.डी.ए का अतिक्रमण हटाओ अभियान

कोर्ट ने कहा कि DDA ने यमुना नदी के रास्ते को साफ करने और अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू की थी, लेकिन अतिक्रमणकारी हटने को तैयार नहीं हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेड़ेला की पीठ ने कहा कि शहर अपनी जड़ों को खो रहा है। यमुना के मैदानों पर कब्जा करने से पानी को बहने का रास्ता नहीं मिल रहा है, जिससे बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो रही है।

अतिक्रमण से डूब रहे घर

अदालत ने यमुना खादर स्लम यूनियन के वकील से कहा कि अतिक्रमण के कारण उन लोगों के घर डूब रहे हैं, जिन्होंने अधिकृत क्षेत्रों में निर्माण किया है और जिनके पास सभी आवश्यक अनुमति है। यह अवैध निर्माण के कारण हो रहा है।

अदालत की चेतावनी

यमुना खादर स्लम यूनियन के वकील ने वैकल्पिक आवास की मांग की, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि उन्होंने पहले ही बेदखली के खिलाफ अंतरिम रोक हासिल कर ली है। अदालत ने कहा कि यह भूमि अधिग्रहण यमुना नदी के चैनलाइजेशन के लिए था और अब कानून का पालन करने वाले नागरिक पीड़ित हैं। अदालत ने इस मामले में एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसने DDA अभियान के लिए रास्ता साफ कर दिया था।

पूरा मामला

DDA ने सैटेलाइट इमेजरी का जिक्र किया जिसमें अतिक्रमण दिखाया गया था। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के तर्क कि वे 1970 के दशक से वहां रह रहे हैं, बकवास हैं। यह दावा झूठा है। केवल वे समूह जिन्हें दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) द्वारा पहचाना गया है, वे ही पुनर्वास के हकदार हैं।

हाईकोर्ट का आदेश

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे बेघर हैं और खादर क्षेत्र में रैन बसेरों और झुग्गियों में रह रहे हैं। DDA ने कहा कि वे यमुना के बाढ़ के मैदान पर अवैध रूप से रह रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के दस्तावेजों में 2006 की कटऑफ डेट से पहले स्लम और झुग्गियों का अस्तित्व नहीं दिखाया गया है, इसलिए उन्हें पुनर्वास का अधिकार नहीं है।

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