पंजाब की मंडियों में इस साल गेहूं की सरकारी खरीद कम हो रही है। उल्टा, प्राइवेट कंपनियां, जैसे आटा चक्कियां वगैरह, सीधे मंडियों से धड़ाधड़ गेहूं खरीद रही हैं। ऐसा पिछले सालों में कम ही देखने को मिलता था। तो ऐसे में अब सवाल ये उठ रहा है कि, आखिर इस बार माजरा क्या है? तो आइए जानते हैं –
पंजाब से देश के बाकी हिस्सों में सबसे ज़्यादा गेहूं की सरकारी खरीद होती है। गेहूं पर सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करती है, उस भाव पर गेहूं खरीदा जाता है। आम तौर पर पंजाब की चक्कियां सस्ता गेहूं पाने के लिए या तो दूसरे राज्यों से गेहूं लेती हैं या फिर सरकारी नीलामी में हिस्सा लेती हैं।
सरकारी कोटा घटा, दूसरे राज्यों में महंगाई
इस बार दो चीजें हो गईं जिसकी वजह से प्राइवेट खरीद बढ़ गई। पहली ये कि सरकार ने नीलामी में आटा चक्कियों के लिए हफ्तावार कोटा घटा दिया था, जो उनकी ज़रूरत से बहुत कम था। दूसरा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी गेहूं महंगा हो गया है, इसीलिए अब पंजाब की चक्कियों को अपना पेट भरने के लिए मंडियों का ही रुख करना पड़ रहा है।
चक्कियों की चालबाजी?
चक्की मालिकों का कहना है कि सरकार को पहले ही सालाना नीलामी कीमतों की घोषणा कर देनी चाहिए, ताकि वो सही से प्लान बना सकें। ऐसा भी हो सकता है कि प्राइवेट कंपनियां अभी सस्ता गेहूं खरीद कर जमा कर रही हों। बाद में शायद गेहूं के दाम बढ़ जाएं, तो इसे ऊंचे दामों पर बेच कर खूब मुनाफा कमा सकती हैं।
असल में ये सब बाज़ार का खेल है। जहां सस्ता मिलेगा, वहां से माल लिया जाएगा। पंजाब में सरकारी खरीद कम हुई, दूसरे राज्यों में गेहूं महंगा हुआ, तो सीधी सी बात है प्राइवेट कंपनियां अपना फायदा देखेंगी। हो सकता है कि बाद में गेहूं की कमी होने लगे और दाम बहुत ज़्यादा बढ़ जाएं।
इस साल पंजाब की मंडियों में अब तक 100 लाख मीट्रिक टन से ज़्यादा गेहूं बिका है, जो कि पिछले साल से थोड़ा कम है। सरकारी खरीद पिछले साल के बराबर है, बस प्राइवेट खरीद काफ़ी बढ़ी है।
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