देश में नई सरकार बन गई है, लेकिन सरकारी अफसरों के चेहरे पर खुशी नहीं, बल्कि चिंता की लकीरें दिख रही हैं। आखिर ऐसा क्या है जो अफसरों को परेशान कर रहा है?
10 साल से एक ही पार्टी की सरकार, अब गठबंधन का खेल
पिछले 10 साल से केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार थी। अफसरों को फैसले लेने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। लेकिन अब गठबंधन सरकार बनने से हालात बदल गए हैं।
सबकी अपनी-अपनी मर्जी
गठबंधन सरकार में कई पार्टियां होती हैं और हर पार्टी का अपना एजेंडा होता है। ऐसे में अफसरों के लिए फैसले लेना आसान नहीं होगा। मंत्री अपनी पार्टी के हितों को ध्यान में रखकर फैसले लेना चाहेंगे, जिससे अफसरों को परेशानी हो सकती है।
अफसरों के तबादले का डर
गठबंधन सरकार में अफसरों के तबादले आम बात है। कई बार गठबंधन में शामिल पार्टियां अपने मंत्रालयों में अपने पसंदीदा अफसरों को लाने की कोशिश करती हैं। इससे अफसरों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है।
कामकाज पर असर
इस सबके चलते सरकारी कामकाज पर भी असर पड़ रहा है। अफसर फैसले लेने से हिचकिचा रहे हैं और काम की रफ्तार धीमी पड़ गई है।
100 दिन का एजेंडा भी अधर में
चुनाव से पहले हर मंत्रालय ने नए सरकार के लिए 100 दिन का एजेंडा तैयार किया था। लेकिन अब गठबंधन सरकार बनने से इस एजेंडे पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या ये एजेंडा अब भी लागू होगा या फिर इसमें बदलाव किए जाएंगे, इस पर अभी कुछ साफ नहीं है।
क्या कहते हैं अफसर?
कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि गठबंधन सरकार में काम करना आसान नहीं होता। उन्हें कई तरह के दबावों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, नीतिगत फैसले लेने में भी देरी होती है।
भविष्य की चिंता
अफसरों को डर है कि अगर गठबंधन सरकार में सही तरीके से काम नहीं हो पाया तो देश के विकास पर असर पड़ेगा।
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