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Ratan Tata Funeral: रतन टाटा का अंतिम संस्कार, टॉवर ऑफ साइलेंस से क्यों हटकर अपनाई गई हिंदू रीति?

Ratan Tata Funeral: रतन टाटा का अंतिम संस्कार, टॉवर ऑफ साइलेंस से क्यों हटकर अपनाई गई हिंदू रीति?
Ratan Tata Funeral: दिग्गज कारोबारी रतन टाटा का निधन भारतीय उद्योग जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली श्मशान घाट में किया जाएगा। हालांकि रतन टाटा पारसी समुदाय से थे, लेकिन उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाएगा। इस विषय पर विचार करते समय, पारसी समुदाय की परंपराओं और रतन टाटा के अंतिम संस्कार के इस विशिष्ट रूप के बीच के अंतर को समझना जरूरी है।

पारसी समुदाय का अंतिम संस्कार: परंपराएं और मान्यताएं

पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की परंपराएं हिंदू और मुस्लिम समुदायों से बिल्कुल अलग होती हैं। पारसी मान्यता के अनुसार, इंसान का शरीर प्रकृति का तोहफा है, जिसे मृत्यु के बाद इसे वापस लौटाना आवश्यक होता है। इस विचारधारा के तहत, पारसी मृत शरीर को न जलाते हैं और न दफनाते हैं। इसके बजाय, शव को टॉवर ऑफ साइलेंस (Tower of Silence) में रखा जाता है, जिसे पारसी ‘दखमा’ कहते हैं। यह एक ऊंची इमारत होती है, जहां शव को प्रकृति के हवाले कर दिया जाता है, खासतौर पर गिद्धों को, जो इसे खा लेते हैं।

टॉवर ऑफ साइलेंस का यह प्राचीन रीति-रिवाज सदियों से पारसी समुदाय में प्रचलित है। इसे प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने का प्रतीक माना जाता है। इस प्रक्रिया से मृत शरीर धीरे-धीरे प्रकृति में विलीन हो जाता है।

Ratan Tata Funeral: रतन टाटा का अंतिम संस्कार, टॉवर ऑफ साइलेंस से क्यों हटकर अपनाई गई हिंदू रीति?

रतन टाटा का अंतिम संस्कार: पारसी परंपरा से हटकर

हालांकि रतन टाटा का संबंध पारसी समुदाय से था, लेकिन उनके अंतिम संस्कार में पारसी परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा है। रतन टाटा फ्यूनरल (Ratan Tata Funeral) का आयोजन हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाएगा। यह निर्णय रतन टाटा के परिवार द्वारा लिया गया है, और उनके शव का अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में किया जाएगा।

विद्युत शवदाह गृह में शव को एक विशेष मशीन में रखकर जलाया जाता है। यह प्रक्रिया पारंपरिक दाह संस्कार की आधुनिक और पर्यावरण-संवेदनशील विधि मानी जाती है, क्योंकि इससे प्रदूषण कम होता है। यह देखा गया है कि कई आधुनिक पारसी परिवार, पारंपरिक रीति-रिवाजों से हटकर, नए तरीकों को अपना रहे हैं। हालांकि, रतन टाटा के अंतिम संस्कार के इस रूप को चुनने का निर्णय विशुद्ध रूप से पारिवारिक और व्यक्तिगत है।

पारसी समुदाय में आधुनिकता और परंपरा के बीच द्वंद्व

पारसी समुदाय में आजकल अंतिम संस्कार की परंपराओं को लेकर एक द्वंद्व देखा जा सकता है। नई पीढ़ी के पारसी इस पारंपरिक रीति-रिवाज को पूरी तरह से नहीं मानते। गिद्धों की घटती संख्या और शहरीकरण के कारण टॉवर ऑफ साइलेंस के प्रचलन में भी कमी आई है। कुछ पारसी परिवार अब शव को विद्युत शवदाह गृह में जलाना पसंद करते हैं। रतन टाटा का अंतिम संस्कार इस बदलाव का एक उदाहरण हो सकता है।

रतन टाटा का अंतिम संस्कार एक ऐसा अनूठा उदाहरण है, जहां पारसी समुदाय की परंपराओं से हटकर एक नया रास्ता अपनाया गया है। रतन टाटा फ्यूनरल जैसे अपवाद पारसी समुदाय के भीतर आधुनिकता और परंपरा के बीच का संतुलन दर्शाते हैं।

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